Book Title: Majernamu Author(s): Gyansundar Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala View full book textPage 8
________________ (८) प्रार्थना आ विनंति लखवामां मारो हेतु ए नथी के हालमां भरत. क्षेत्रमा कोइ साधु नथी. तेमन कोइने हलका पाडवानी कोशिष नथी. मारी मान्यता छे के शासननो आधार मुनिमंडळी उपर छे, तथा समाजनी लाभ हानिनी जोखमदारी पण मुनिमंडळी उपर रहेली छे. चालु समयमां भारत भामिमां अनेक मुनिमतंगजो विचरे छे. .तेओना पवित्र उपदेश द्वारा समयानुसार अनेक सुधारा थया छे, थाय छे अने थता रहेशे. श्री वीर शासन एकवीश हजार वर्ष पर्यन्तः अविच्छिन्न स्वरूपे चालशे ते महा मुनिमंडलना प्रनापेज. . सखेद लखवू पडे छे के रत्न बहु कीमती छतां पण काचना टुकडाओ साथे मेळसेळ थवाथी झवेरी शिवाय कोइ कीमत करी शकता नथी. बाकी साधारण जनसमुह तो बधाने काचनो देखाष दे छे. एटला माटेन काच अने रत्नो जुदा पाडवानी जरुर छे. कडं के के-"गणिल्ठति पादाने, काचः शिरसि धार्यते क्रयविक्रय वेलायां, काचः काचो मणिर्मणिः । मतलब के रत्न पगे रोळाता होय अने काच माथे बांध्यो होय परंतु परीक्षक पासे काच ते काचज बनवाना अने रत्न ते रत्न वस्तुज छे--एक अमूल्य चीज छे. बन्ने ज्यांसुधी अलग अलग बतावामां न आके त्यांसुधी भद्रिक माणसोनी रत्न तरफ आदरभावना-सत्कारबुद्धि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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