Book Title: Majernamu
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 6
________________ ( ६ ) उत्सर्ग, अपवाद, परंपरा, गुरुगम क्यांथी होय एम छपनमां पाना सुधीनी कुयुक्तियो संभळावी दे छे. परिणाम शुं आवे छे ते हवे फरीथी केवानुं नथी. घणा कोलाहल करनारने जगत हवे बराबर पीछाणी शके छे. हमेशां सत्यज बहार तरी आवे छे अने लोको बराबर मानी शके छे. लोको खाली वातोने अने कोरा पंडितोने मानवानां नथी. ए तो हवे चारित्रने मान आपे छे.. कदाच एकाद प्रसंगमां भूलथाप खाई जशे, परंतु बीजी वार ठगाशे नहि. अमारी पक्की श्रद्धा छे के शासननो पुनरुद्धार मुनि महाराजो थीज थवानो छे. अने तेवा मुनिराजो भारतभूमि उपर विचरे छे. रत्न अने काचना टुकडा साथेज पड्या होय तो जोनारने सादी नजरे सरखा देखाय. पण झीणी नज़रे जेवाथी खरी वस्तुओ मळी शंके छे-ओळखी शकाय छे. बाह्याडंबरना भमकाथी काचना कडा झवेरीओ सन्मुख हमेशां नापास थाय छे. रंग, ढंग, चाल, चलगत, चाळा, चेष्टा, टापटीप, वडे ढोंगी, धर्मधुर्त जरुर दोन पडी जाय छे. अने साचा संत पुरुषो खरी कसोटी उपर दीपी नकळे छे. · एक बात समजवा जेवी छे ते आछे के, आगमोमां जे बाबतनुं नामनीशान न होय अने पछीनां ग्रंथोंमां आग्रह- कदाग्रह रुपे तथा गच्छ व्यवहार रुपे घर घालीने बेठा होय तेवा दाखलाओ मळी शके छे. तीन थूई, चार थई, पांच कल्याणिक, छ कल्याणिकचोमासामां अधिक मास. बे पर्युराणा - लोकिक टीपणा मुजब अर्कै मानवं ने अर्धन मानवं करेमीमंते त्रणवार, एकवार, पेला के पछी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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