Book Title: Majernamu
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 9
________________ न थाय. केटलाएक बनावटी रत्नो पण लोकोमा जोवामां आवे छे. उपरथी सारी टापटीप करी मखमलना चळकदार कपडामां लपेटी लोकोने रत्नना नंग बताववामां आवे छे. जे खरी रीते साचा रत्ननी मश्करी करवा जेवं थाय छे--साचानी प्रतीत उठाडवा जेवू बने छे. रत्न अने काच बन्ने साथेज रह्या होय तो समाजनुं भलं करी शके नहि, जैन समाजमां परीक्षको. गण्या गांठ्यान होय छे. काचना ककडाओ दृष्टिरागी अने लालचु लोकोने जेम तेम समजावी पैसा एकठा करावे. कदाच एकाद दावपेचमा आवी जाय; परंतु तेरलाख जैन जीवोनु कल्याण करावी न शके. समाजमां अंतःकरणनी धर्म लागणी-धर्म तत्वज्ञान विषय कषायथी निवृत्ति-जिनाज्ञा आराधक ए तो घणा दूरज समजवा. ज्यारे जिनाज्ञा तरफ दृष्टि करशुं तो भले मोटा मोटा नामधारक व्याख्यानमां-उपदेशमां कथनी कथता होय; परंतु पोताना ज मंडळमां सुखसंयम यात्रामां शुभ प्रवृत्ति न होय; तो पछी समाजनी सुधारणा कयांथी करी शकाय ! पोथीमांना रांगणा जेवू धर्मोपदेशो जन रंजनाय । बीजाने कहे खोटो संसार, पोते चाटे वारंवार. आवा काचना टुकडाओथी समाजने घणु सहन करवू पडे छे, अने तेवाओथी चेतीने चालवू हितकर छे. लेखक. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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