Book Title: Majernamu
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 46
________________ ( ६ ) परपेठ. ( पेठनो उत्तर न आववाथी परपेठ लखाय छे. ) ( दान कहे जग हुं वडो, मुज सरखो न कोय ललना - ए देशी. ) कागळ हुंडी पेठने, केम न सीकारी नाथ ललना; हवे परपेठ सीकारजो, जो तमे जगना' तात ललनाकागळ हुंडी पेंठमां, अहीं आना हाल विचार; शेष लखं परपेंठमां, भरतना सहु समाचार. पहेली आडत बांधत; करवो जोइए विचार; हवे अधवचमां भरतने, किम छोडो निरधार. भला माणस संसारमा, करे न विश्वासघात; तुं साहेब त्रिभुवन धणी, मली कीधी आ वात. एवा कपटी अमे नहीं, नाणां राखी लखीए पेठ; समाचार दुकानना, तेहनी लखं परपेंठ. साध्य रोगनी औषधि, होवे जीव विशुद्ध; रोग मोटो असाध्यनो, दवाथी न थाये शुद्ध. एक कनक अने कामिनी, वश कर्यो सौ संसार; प्रवेश कर्यो शासन विषे, सुणीये ते समाचार. अर्थ (द्रव्य ) नी दीये देशना, लेवे ज्ञानने नाम; ऊंजमणा उपधानमां, काढयुं पेदाशनुं काम. महिला परिचय अति घणो, भविष्यमां वधशे रोग; वळी सुनो पन्यासजी, झूठा मांडया जोग. Jain Education International For Personal & Private Use Only ल० ल० का O ल० ल० का ० ३ ० का० ल० ल० का ० ४ ल० ल० का ० १. ल० ल० का ० ल० ल० का० २. ल० का ० ● ल० का ० ८ www.jainelibrary.org

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