Book Title: Majernamu
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 118
________________ . (७८) छे, कळीकाळमां देरासरो कल्पवृक्ष तुल्य इच्छित सुखना देषावाळा छे परन्तु जे मन्दिरोने नामे लडवु, जगडवु, के ममत्व भावथीं अपणायत कर, ए दुःखदाई थई पडे छे, माटे तेने त्याग कर. ढुंढक अधिकार. दोहा, १ हवे ढुंढकनी वारता, लखतां न चाले हाथ; मुलन कापे वृक्षनुं, तुं जाणे जगनाथ. जिन आगम जिन प्रतिमा, कलियुगमां आधार; जे उत्थापी लुपके, सुण तेना समाचार. ढाल २५ मी उपरनी. अमदावाद गुजरातमां, लैपक लहियो हो ! लखे जैन सिद्धांत; पापाचारी जांणी करी, काढी मुकयो हो ! संघ मळी एकांत सु० १ विरुद्ध उपदेश सुणावतां, हिंसा हिंसा हो ! पूजा जातरा स्थान; उदय कर्मना योगथी, बे त्रण हो ! मळीया अज्ञान. बकरीने गया काढवा, घरमा पेठो हो ! मोटो सिंह; खंडन तो हिंसा तणुं, आगम हो ! लोप्या अविध, लिंग तो राख्युं जैननुं, श्रद्धा हो ! थइ विपरीत; लजीथी ढूंढक थया, तोडी हो ! लंपकनी रीत. 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only ० २ सु० सु० ३ सु.० www.jainelibrary.org

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