Book Title: Majernamu
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 124
________________ पडदे बेठा पूजनी, साध्वीओ हो ! रहे पड़दा बीच; भोजन नव नवी जातना; अंधारे हो करे आंखो मीच. सु. १५ शुं लखु कर्म विडंबना, शुं लखं हो ! पंथणीओना कामः दुराचार वध्यो घणो; नहीं छानु हो ! जाणे आतमराम सु० १६ पूछे साधुने शुं खाशो, दूध दहीं हो ! घी मीठाइ माल, ग्रहस्थी आगळ कहे पूजनी, मारा साधु हो ! त्यागी उनमाल सु० १.७ आधा कर्मीनी भावना, भरी लावे हो ! जेम पातरां पूर; : काचं पाणी राखोडी तणुं, माल खाइ हो भ्रष्ट होवे कूर सु. १८ खोटी करे प्ररुपणा, निन्हव कह्या हो ! आगमवाद, लिंग पण जुदो जैनथी, नहीं ग्रहस्थी हो ! नहीं होवे साधु सु० १९ तेरापंथी नाटक वांचनो, जेमां हो ! नहीं होय बाकी कोय; भोला पड्या छे भ्रममां, पंथी उपर हो ! अनुकुंपा जोय. सु० २०. शीक्षा देदे पुत्रने, नहीं करे हो ! प्रकाशीत पाप; लोकयुक्ति न्यायथी, एटलुं लखु हो ! आगळ जाणो आप. सु० २१ ढाळ २६ मी-बंधुओ! तमारा माटे मने घणीन अनुकंपा आवे छे कारण तमे जैन नाम धरावो छो अने जिनाज्ञाथी विरुद्धाचरण करो एटलुन नथी परंतु अन्य लोकोमां जैननी दया अने उदारतानी मोटी छाप पडे छे छतां तमे दया दाननो निषेध करो छो ए केटली भुल भरेली छे परंतु ज्यारे निर्णय बुद्धिथी विचार करशो ते तमने सत्य मार्गनी प्राप्ती थासे माटे पक्ष छोडी न्यायनो रस्तो लेवो जोइए. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144