Book Title: Majernamu
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 137
________________ (९७) संघनेता मळी एकला सुविहित हो मळे साधु समाज; समयानुकुळ चालवू नहीं देवो पासत्थाने साज. मुनि उपदेश श्रावकने करे, श्रावक हो लावे मुनिने ठाम; बगड्याने सुधारतां बांधे हो तीर्थकर नाम. . सु० ६३ छती शक्ति खप करो, कांई करो हो शासन उद्धार, मनुष्य जन्म सफल करो, कारंवार ो नहीं अवतार. सु०६४ सात क्षेत्र आगममां कहा, ज्ञान हो का सर्वन मूल उत्तेजन दई तेहने मोक्ष आये हो काढी कर्मशूल. सु. ६५ धैर्य गुण धारण करो, मेझर वांची हो मनमां करी विचार ठीक लागे तो आचरो, दुःखथी हो में कर्यो पोकार सु० ६६ ढाळ २९ मी..-शासननी अंदरं श्रावक पण उच्च कोटीमां गणाय छे. कारण के छ क्षेत्रने पोषण करवा ते श्रावकथीन बनी शके छे माटे श्रावक वर्गने पोतानो शील, ( आचार ) न्यायपणु, सत्यता परोपकारता, सर्वजन मैत्रीक भावना अने आत्मदशामां प्रयत्न करी शासन सेवा बनाववा तत्पर थर्बु जोइए. जे अज्ञानवश कोइ स्थले कोइ व्यक्तिमां दुर्गुण जोवामां आवे तो मधुर वचनथी हित शिक्षा आपी गुण वधारवा जोइए परंतु अंध श्रद्धाथी एक तारे बीजाने डुबी मरवू के कलेश कदाग्रह करवो ते वीर पुत्रोने छानतो नथी, माटे यथा नाम तथा गुण प्राप्त करवो. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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