Book Title: Majernamu
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala
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(९०)
श्रावक अधिकार.
दोहरा.
जिन शासन भूषण समा, दीपावे जैन धर्म; जीवादिक नव तत्वना, साचो समजे मर्म. दयादान उदारता, हृदय स्फाटिक समान; जिनवर पूजे भावथी, श्रावक गुणनी खाण.. रसीया जैन सिद्धांतना, नवी नवी धारे वात; एक तरफ साधु उपासका, एक तरफ जनकने मात. आलंभिक तुंगीया तणा, शंख पोख्खली सार; आनंदादिक मोटका, एक लख गुण सठ हजार. श्रीमुख वीरे वखाणीया, मंडुकने कामदेव, दृढ श्रद्धा वीतरागनी, सदा करे गुरु सेव. मात पीता सरखा कह्या, ठाणांगे उजमाल, भगवती शतक सोळमे, कह्या रत्नोनो माल. जेवा साधु तेम श्रावको, शासन तुज जयवंत वर्तमान वीतक लखं, सांभळ महिमावंत.
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