Book Title: Majernamu
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 117
________________ (७७) ज्ञान द्रव्य वधारवा, ज्ञानोपकरण हो! स्वपरनां सुणों स्वाम; गुरु गौतमथी नहीं टळे, करी देवे हो ! बधा लीलाम. सु० २३ माळा पहेरावे पैसा लुटवा, अधिक हो ! एक एकनुं मान; जीव बापडा शुं करे, नेवा गुरु हो ! तेवा जमान, सु० २४ पहेलां पर्व आराधता, हमणां हो ! करे वेपार; ते द्रन्यन | होवे, सुणनो हो ! तेना समाचार, सु० २५. झघडा तो आखा वर्षना, काढे हो ! पर्युषण काल; पर्व व्याख्या क्यां रही, मांहो मांहे हो ! आवे गालमगाल. सु० २६ नाम कीर्ति अभिमानथी, बोली बोले हो ! बीजो लेवे तोड; वाजां वागे रण तुरना, ईनत राखे हो ! नहीं शके छोड. सु० २७. ज्यारे पैसा देवा पडे, वांधा काढे हो ! वळी अमुका एम; कोरट चडे धरणा देवे, फजेती हो ! वळी करे तेम. सु० २८ देव ज्ञान द्रव्य तणा, पोतुं राख हो ! केई गृहस्थी पास; पोते पैसा वापरे, काम काचो हो ! होवे देवद्रव्य नाश. सु० २९ प्रवृत्ति चैत्यवासी तणी, सत्यविजये हो ! बधी दीधी छोडा . . यतिये मळी सरु करी, हनी सुधी हो ! नहीं सके तोड. सु. ३० निषेध नहीं विधि तणो, अविधिए हो ! लागे मोटुं पाप; केटलुं लखुं मारा बापनी, नहीं छार्नु हो ! बधू जाणो आप. सु०३१ ढाळ २४ मी-मगवानना देरासर खरेखर मोक्षना दातार छे अने तीर्थ के देरासरनो रक्षण करे छे ते शासनना रक्षण करवा जेवू Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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