Book Title: Majernamu
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 47
________________ ( ७ ) पहाड रचना करावतां, लूटे जीवोना प्राण; आरंभथी शंके नहीं, उंची घरी तुज आण. कदी तमारा मनने विषे, एवो हशे विश्वास; साधु श्रावक तणो एक जाणो ढंग; कांण रही नहीं कोईनी, नहीं रह्यो शासन रंग. रोग वैरी अग्नि तणो, वळे शीतळ आचार; वध्याथी व्याधी करे, जल्दी करो उपचार. दुःख नही आणा मुकतां, केम आवे बीजाने देख; बगला भक्त भेगा हुआ, केटला लखं हुं लेख. परपेंठ सिकारो नाथजी, मत करो देर लगार; ज्ञान कहे बगड्या पछी, दुष्कर शुद्धाचार. ल० श्रावकवाड शासन तणी, वारण करशे तास. ( तेनी ) ल० का ० ११ सुणो श्रावकनी वारता, देवद्रव्य पोते खायः गच्छ तणा झघडा करे, केटलं लख्युं हवे जाय. बांध्या ते दृष्टि रागमां, न करे हृदये विचार; ध्वजा पताका सारीखा, फरी जाय वायु लार. ल० का ० १२ ( पछवाडे ) ल० का ० १३ ल० ल० का ० १४ ३० ल० का ० १५ ल० ल० का ० १६. ल० ल० का ० १७ Jain Education International ल० ल० का ० १० For Personal & Private Use Only ० ० www.jainelibrary.org

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