Book Title: Majernamu
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 2
________________ - भूमिका. .. शासनप्रेमी अने वीरपुत्रो! आजे हुं हार्दिक रहस्य आपनी . सन्मुख जाहेर करूं छं जे महाशयो ! सूर, वीर, धीर थई - विचारशो, लगभग घणा समयथी आपणा पोताना घरमों हानि थवा मांडी. घरनां चोरज चोरी करवा लाग्या. घरफाटे घर जाय, एवं नाटक 'थवा लाग्यु. तेनी साथेन बरोबर सावधान पुरुषो पण कटिबद्ध थई पोकार करता आल्या छे. खूब जोर शोरथी आपणा समाजना सुधारको चेताव्या करे छे परंतु घरनां चोरो घरमांन गोंधाई रह्या छे एटले सर्वाशे निर्भय बनी शकातुं नथी. तो पण घणे भागे दीवो हाथमां लईने उभा रेवाथी घरनां चोर जोर चाली, शके नहि एटला माटेज आ साथे कागळ, हुंडी, पेठे। परपेठ अने मेजरनामुं लखी दीवा जेवं अनवाणुं करवाथी घरमां लुट थती अटके छे अने श्री सीमंधर स्वामी भगवान्ने आपणी खबर आपीने मनन शांत करुं छु. आपणा घरमां मुनिम-गुमास्ताओए परस्पर सजगडा करी अनेक उपद्रव करी नांख्या छे, शासनने चारणीनी पेठे चाली नांख्युं छे, मूळ मार्गने घणी तरेहथी हानि करी नवा नवा रीवाजो दाखल करी खरी बाबतमां गुंचवाडा उमा करी दीधा छे. सत्यने भेळशेळ करी सामान्य प्रजामां कोलाहल मवावी दीधो छे, घणा समज जीवोथी पण खुलासा न नीकळी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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