Book Title: Mahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Amrutrasashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 4
________________ समर्पण - पुष्पांजली जिनके जीवन का क्षण - क्षण वैराग्य की निर्मल, उज्जवल भावतरंगो से संप्रक्षालित है। जिन की वाणी, संयम, शील, त्याग एवं तप के अमृतकों से आकलित एवं संसिक्त है। जिन के हृदय में विश्व वत्सलता, समता, करुणा की त्रिवेणी समुच्छलित संप्रवाहित है / जो परम कल्याणकारी आध्यात्मिक आदर्शों को जन - जन व्यापी बनाने हेतु सतत सत्पराक्रमशील है। जिन के प्रक्षय, संरक्षण एवं शिक्षण से मुजे अपनी जीवन यात्रा में उत्तरोत्तर अग्रसर होते रहने में असिम शक्ति और संबल प्राप्त होता रहा, जिन्होने अपने समग्र जीवन में न केवल हम अंतेवासिनियों को ही वरन् समस्त जन समुदाय एवं मानवता को धर्मपाथेय के रुप में सदा दिया दे रहे है एवं देते रहेगें ऐसे शुद्धपयोगानुभावित, राष्ट्रसंत बिरुद विभुषिता, परम उपकारी, मम श्रद्धा के केन्द्र, संयमदाता, जीवननिर्माता, आशीर्वचन एवं कृपादृष्टि की सदा अनवरत वर्षा करनेवाले, आचार्यदेवेश श्रीमद् विजय जयन्तसेनसूरीश्वरजी के पावन पाद पद्मो में दीर्घायु, चिरायु एवं शतायु की मंगल कामना के साथ त्वदीयं तुभ्यं समपर्यामि / 히 지 이 भुवनचंद्र - भक्ति - अमृत सिद्धान्त समन्वित, आदर श्रद्धा - विनयपूर्वक भावत्कं वस्तु गुरुदेवे ! सर्वश्रेयोविधायिके / अर्प्यते भक्ति भावेन, भवत्वै शिष्यया मुदा / / चरणाविन्दरेणु रुप साध्वी अमृतरसा Jain Education Intemallid For Pers & Priva. Use only wwe lainelibrary.org

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