Book Title: Mahaviracharya krut Ganitasar Sangraha
Author(s): Alexzander Volodraski
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 3
________________ यदि दो में से एक राशि धन हो और दूसरी ऋण तो फल ऋण आएगा। यदि धन राशि और ऋण राशि का योग किया जाए तो फल उनके अंतर के बराबर होता है। [9,1,50] * "दो ऋण या दो धन राशियों का योगफल क्रमश: ऋण या धन होगा। धन राशि, जिसे किसी राशि से घटाना हो ऋण बन जाती है जबकि किसी राशि से घटाई जाने वाली ऋण राशि धन हो जाती है।" [9,I,51] धन और ऋण राशियों का वर्ग धन होता है। इन वर्गों के वर्गमूल क्रमशः धन और ऋण होते हैं। चूंकि ऋण राशि का वर्ग नहीं होता इसलिए इसके वर्गमूल भी नहीं बनाए जा सकते । [9,I, 52] इसी तरह के कई नियम महावीर के बाद के भारतीय गणितज्ञों ने भी दिये हैं। विज्ञान के इतिहास में ऋण संख्याओं का सर्वप्रथम उल्लेख चीनी ग्रन्थ "गणित के नी अध्याय" के आठवें खण्ड में मिलता है। इस ग्रन्थ में ऋण संख्याओं के जोड़ने और घटाने के नियम भी दिए गए हैं। इसमें ऋण संख्याओं के लिए 'फू' शब्द का प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ है-ऋण, उधार, कमी । इस दृष्टि से दोनों भाषाओं के शब्द समान ही हैं। भारत में ऋण संख्याओं की शुरुआत ईसा की आरंभिक शताब्दियों में हुई। परंतु, यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता है कि ऋण संख्याएँ भारतीय गणितज्ञों की ही देन हैं या उन्होंने इन्हें चीन से ग्रहण किया। रैखिक समीकरण प्रतिशत, गति, मूल्य की अदायगो आदि के प्रश्नों का हल करते समय या उनके नियम बनाते समय अक्सर रैखिक समीकरण का उपयोग किया जाता है। अनेक प्रकार के प्रश्नों और समस्याओं का हल अज्ञात राशि वाले रैखिक समीकरणों की मदद से निकल सकता है। उदाहरण के लिए:- "यदि किसी राशि के 3152536 अशा . अंशों का योगफल है तो वह राशि क्या है ?" [9,III,108] इस प्रश्न को कल्पित नियम के सिद्धांत से हल किया जाता है। "अज्ञात राशि को 1 मानकर इन अंशों का योगफल निकालना चाहिए। अब यदि भागफल को इस ज्ञात योगफल से विभाजित किया जाए तो वह अज्ञात राशि मालूम की जा सकती है। [9,III,107] एक कल्पित नियम का सिद्धांत उन प्रश्नों के लिए उपयुक्त है जो ax= तरह के समीकरणों में बदले जा सकते हैं; विशेषकर जबकि कुछ भिन्नों का योगफल 'a' हो। इस स्थिति में x के रूप में वह संख्या चुनी जा सकती है जो कि हर का गुणज हो। यदि समीकरण ax =b, हो, तो हल इस प्रकार होगा : h x=3x1b उपरोक्त नियम परवर्ती अरब और यूरोपीय गणित साहित्य में भी मिलते हैं । सातवीं-आठवीं शताब्दी में बक्षाली हस्तलिपि ग्रंथ में ऐसी समस्याओं के हल दिये गए हैं जिनका समीकरण ax+b=p होता है। यदि समीकरण assbp हो, तो उसका हल x=x+PP होगा। ___ [5, पृष्ठ 371] a आर्यभट्ट प्रथम (10, II, 30), ब्रह्मगुप्त (11, XVIII, 43) श्रीपति, भास्कर द्वितीय और नारायण (6, अध्याय 2, पृष्ठ 40-41) ने निम्नलिखित रैखिक समीकरणों को हल करने के नियम दिये हैं : ax+c=bx+d ब्रह्मगुप्त का नियम इस प्रकार है :-"एक अज्ञात राशि वाले रखिक समीकरण में विपरीत क्रम से लिए गए ज्ञात पदों के अंतर को यदि अज्ञात पदों के गुणकों के अंतर से विभाजित किया जाए तो अज्ञात राशि मालूम की जा सकती है।" [6, अध्याय 2; पृष्ठ 40] m=x, इस तरह के समीकरण से संबंधित एक प्रश्न इस प्रकार है : १. श्री एम. रंगाचार्य की पुस्तक के संदर्भ अंग्रेजी अनुवाद के अंश के है। अनुवादक -अनु. जैन प्राच्य विद्याएं. . ... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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