Book Title: Mahaviracharya krut Ganitasar Sangraha
Author(s): Alexzander Volodraski
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 6
________________ द्विघात समीकरण महावीराचार्य के ग्रन्थ में द्विघात समीकरण पर अलग से कोई अध्याय नहीं है। फिर भी कई प्रश्नों का हल केवल द्विधात समीकरणों के मूल ज्ञात करने से निकल सकता है। इस तरह का एक प्रश्न है : “ऊंटों के झुंड का - भाग जंगल में है, 15 ऊँट नदी के किनारे और शेष ऊँट जो कुल संख्या के वर्गमूल का दुगुना हैं, पहाड़ी पर हैं । ऊँटों की संख्या क्या है ?" [9, IV, 34]. झुंड में ऊँटों की संख्या x मानने पर निम्नलिखित समीकरण प्राप्त होगा : x+20 +15=x. अथवा +cv x + p=x या फिर, (1-2)x-ef x =p महावीराचार्य इस द्विघात समीकरण को निम्नलिखित नियम से हल करते हैं : "वर्गमूल के गुणांक के आधे भाग और मुक्त पद को भिन्न रहित इकाई में विभाजित करना चाहिए। इस प्रकार प्राप्त मुक्त पद के वर्ग के कुल योग के वर्गमूल को प्राप्त गुणांक में जोड़ना चाहिए । इस राशि का वर्ग ही अज्ञात राशि है। मूल संबंधी प्रश्नों को हल करने की रीति यही है। [9, IV, 33] इस नियम के अनुसार हल इस प्रकार निकलेगा : 2 (2 +N ) +_P + P ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रह्मगुप्त को भी ज्ञात था कि द्विघात समीकरण के दो मूल होते हैं। टीकाकार पृथुदकस्वामी (सन् 860) के अनुसार इस प्रश्न पर निर्भर करता है कि मूल को जोड़ा जाए या घटाया जाए। [6, खंड 2, पृष्ठ 75). परंतु ब्रह्मगुप्त के ग्रन्थ में मूलों के इस दोहरे अर्थ का उल्लेख नहीं है । जैसा कि पहले कहा जा चुका है, महावीराचार्य को वर्गमूलों के दोहरे अर्थ मालूम थे। इसका उपयोग निम्नलिखित प्रश्न को हल करने के नियम में किया गया है : “मोरों के झुंड का - वां भाग, जो अपनी ही संख्या से गुणा किया हुआ है, आम के पेड़ पर बैठा है। शेष का - वाँ भाग, स्वयं की संख्या से गुणा किया हुआ अन्य 14 मोरों के साथ 'तमाल' के पेड़ पर है। मोरों की कुल संख्या क्या है ? [9, IV, 59] मोरों की कुल संख्या यदि हम x मान लें तो निम्नलिखित समीकरण प्राप्त होगा : x x + 15x15x + 14=x. या सामान्य रूप में. ax - x + p= 0. आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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