Book Title: Mahaviracharya krut Ganitasar Sangraha
Author(s): Alexzander Volodraski
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 9
________________ तो, ७ –8V - -8 10 यदि 2 तो 2 9 56. अंत में x का मान निकला 200. a1= a1 =y-8 भेदी भारतीय गणित साहित्य में अंकगणित श्रेढ़ी और ज्यामिति श्रेढ़ी का प्रमुख स्थान रहा है। कुछ तरह के प्रश्न असाधारण तौर पर लोकप्रिय हुए जैसे शतरंज के आविष्कार से संबंधित प्रश्न, जिससे कि ज्यामिति श्रेढ़ी के योगफल निकाले गये जिनमें हर का मान संख्या 2 था। यही नहीं, इस तरह के ज्यामिति श्रेढ़ी के योगफल निकालने संबंधी प्रश्नों का उल्लेख प्राचीन चीनी ग्रन्थ "गणित के नौ अध्याय" में भी है। a1 = भेड़ी का उल्लेख बहुत सी गणित की पुस्तकों तथा नवविद्या के ग्रन्थों के गणित संबंधी अध्यायों में मिलता है। इन प्रत्थों में कभी-कभी श्रेढ़ी के नियम और प्रश्न इतनी अधिक मात्रा में हो जाते थे कि उनके लिए “श्रेढ़ी व्यवहार" का एक विशेष खंड अलग से दिया जाता था। d= अंकगणित श्रेढ़ी के प्रश्नों को हल करने के नियम महावीराचार्य के अनुसार इस प्रकार थे : - d.n जैन प्राच्य विद्याएं Jain Education International S S n 2.s n S n 1 V 7-1 2 2 n - a - (n-1). d, 2 = 10 S= S = 9 V = (-8 V) 10 d S= 70 25 n 1 2 अंकगणित श्रेढ़ी के योगफल और पदों की संख्या ज्ञात करने के नियम, जो उनसे पहले के गणितज्ञों ने बनाए थे, महावीराचार्य ने इस प्रकार दिये हैं: : [ -2a } [(n-1)d+2a ] n. 2 √ d+as a1tan 2 =56. n, 2ds+ d -a +11+1++-- d d 2 [9. II, 73] For Private & Personal Use Only [9,11,74] [9.11.76] [9, 11, 75] [9, II, 61] [9.11.62] [9, II, 64] [9.111.33] ८१. www.jainelibrary.org

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