Book Title: Mahaviracharya krut Ganitasar Sangraha Author(s): Alexzander Volodraski Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf View full book textPage 7
________________ इस तरह के समीकरण को हल करने का नियम है :- "अपने ही अंश से विभाजित हर तथा मुक्त पद के चौगुने के अंतर को इस हर से, जो कि अंश से विभाजित हो, गुणा किया जाता है। इसके वर्गमूल को अंश से विभाजित इस हर से जोड़ा और घटाया जाता है। इसका आधा ही अज्ञात राशि है।" [9, IV,57] इस तरह, ___b //b -4p) H 2 कुछ परिस्थितियों में जबकि द्विघात समीकरण के मूलों में से कोई एक मूल प्रश्न के उपयुक्त नहीं होता है, महावीराचार्य केवल वही मूल चुनते हैं जिसके द्वारा सही हल प्राप्त किया जा सकता है। उच्चतम क्रम के समीकरण कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका हल एक अज्ञात राशि वाले द्विघात समीकरणों से उच्चतर समीकरणों के द्वारा निकलता है। जैसे ज्यामिति श्रेढ़ी के हर 'q' को ज्ञात करने के लिए समीकरण को हल करना होगा। S = aq" श्रेढ़ी का हर , V के बराबर है। q=VE [9, II, 97] N-घात के मूल निकालने के नियम महावीराचार्य ने नहीं दिये हैं। स्पष्टतः ऐसे मूलों की एक चुनी हुई सूची दी जाती थी। "ज्यामिति श्रेढी का पहला पद 3 है, कुल पदों की संख्या 6 है और योगफल है 4095 । ज्यामिति धेढ़ी का हर क्या है ?" [9, 11, 102] यह प्रश्न पंचम घात के समीकरण से हल होता है। xi =4095 3 (x + x + + x + x + 1)= 4095. यह समीकरण निम्नलिखित नियम से हल किया जाता है। “योगफल को पहले पद से विभाजित करो। प्राप्त भागफल में से प्रत्येक बार एक इकाई घटाओ। इस संख्या में जितने का भाग दिया जाएगा वही संख्या ज्यामिति श्रेढ़ी का हर होगी।" [9, 11, 101j. वास्तव में यदि घेढ़ी के हर को x मानें तोn-1 घात का समीकरण इस प्रकार होगा: "-1 x-1-S. दोनों भागों को पहले पद से विभाजित करने पर और उसमें घटाने पर निम्नलिखित समीकरण प्राप्त होता है : x से काटने पर और 1 घटाने पर जो समीकरण बना वह इस प्रकार है : जैन प्राच्य विद्याएं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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