Book Title: Mahaviracharya krut Ganitasar Sangraha
Author(s): Alexzander Volodraski
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ भीतरी और बाहरी वलय के क्षेत्रफल इस प्रकार होंगे :-"भीतरी व्यास को वलय की चौड़ाई से जोड़ने पर और फिर 3 तथा वलय की चौड़ाई से गुणा करने पर बाहरी वलय का क्षेत्रफल ज्ञात होता है। यदि व्यास से वलय की चौड़ाई को जोड़ने की बजाय घटाया जाए तो भीतरी वलय का क्षेत्रफल प्राप्त होगा।" [9, VIL, 28] Sबाहरी =3 (d + a) a भीतरी = 3 (d-a) a यहाँ d = व्यास, a = वलय की चौड़ाई और 63 है। यदि II10 हो तो यथार्थ क्षेत्रफल ज्ञात किया जा सकता है। ___[9. VII, 671 जौ, मुरज, पणव और वज्र की तरह की आकृतियों का क्षेत्रफल प्राप्त करने के लिए उनके मध्य भाग की चौड़ाई और किनारों से ली गई चौड़ाई के योग के आधे को लंबाई से गुणा किया जाता है। [9. VII, 32] आकार क्षेत्र (यवाकार क्षेत्र) मुरजाकार क्षेत्र 'epHo мураджа पण्वाकार क्षेत्र > बयाकार क्षेत्र वज्राकार क्षेत्र панава ваджра चित्र:7 यदि a = आकृति के मध्य की चौड़ाई, a = एक किनारे से ली गई चौड़ाई और b = लंबाई हो तो s-4 + boy 2 अर्थात् सभी आकृतियाँ आयताकार रूप में बदल दी जाती हैं जिनमें प्रत्येक की औसत चौड़ाई और आरंभिक लंबाई ली जाती है। यह नियम और चतुर्भुज का क्षेत्रफल ज्ञात करने के नियम में परस्पर संबंध है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह दोनों ही नियम समान परिस्थितियों में बनाये गये हैं। श्रीधर कृत "पतिगणित" के एक अज्ञात टीकाकार ने वज्र के आकार की आकृति को दो बराबर समलंबों के रूप में दिखाया है जो कि एक दूसरे के साथ निम्नतम आधारों के द्वारा जुड़े हैं। [4, पृष्ठ 238]. चार उदाहरण इसी नियम के लिए दिये गये हैं। "जौ के आकार की आकृति की लंबाई है 80, और मध्य भाग की चौड़ाई 40 है। जौ का क्षेत्रफल क्या होगा ?" [9, VIL, 33] "मुरज के आकार की आकृति का क्षेत्रफल बताओ यदि उसकी लंबाई 80 दंड, किनारों से ली गई चौड़ाई 20 दंड और मध्य भाग की चौड़ाई 40 दंड हो।" [9, VIL, 34]. "पणव के आकार की आकृति का क्षेत्रफल क्या होगा यदि उसकी लंबाई है 77 दंड, दो किनारों में से प्रत्येक से ली गई चौड़ाई हो 8-8 दंड, और मध्य भाग की चौड़ाई हो 4 दंड।" [9, VII, 35] “यदि वज्र के आकार की आकृति की लंबाई है 96 दंड, मध्य भाग सुई की नोक के बराबर है और किनारों से ली गई आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28