Book Title: Mahaviracharya krut Ganitasar Sangraha
Author(s): Alexzander Volodraski
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 11
________________ प्राकृतिक संख्या शृंखला के घनों का योगफल इस प्रकार है : Ta = (") (n+1). [9, VI, 301] अंकगणित श्रेढ़ी के पदों के घनों का योगफल है : [a+(k-1)d] =Sata-d)+Sd, [9, VI, 303] इसमें S का मान इसी श्रेढ़ी के पदों का योगफल है। पहली । प्राकृतिक संख्या शृंखला के वग और धनों को निकालने की विधि का उल्लेख आर्यभट्ट प्रथम से लेकर नारायण आदि सभी भारतीय आचार्यों के ग्रंथों में मिलता है। यह विधियाँ बावीलोन और मित्र के निवासियों, नानियों और चीन के लोगों को भी ज्ञात थीं। बाद में इन विधियों का उल्लेख अरब और पश्चिम यूरोप के गणित साहित्य में भी मिलता है। यही नियम बाद में श्रीधर और नारायण के ग्रन्थों में भी मिलते हैं। [4, पृ० 233, 255] संख्या सिद्धांत भारतीय गणितज्ञों ने संपूर्ण धन संख्याओं की एल्गोष्मि विधि बनाई जिसका उद्देश्य पहले और दूसरे घात के अनिश्चित समीकरणों का हल निकालना था। महावीर के अनुसार संपूर्ण धन संख्याओं के अनिश्वित समीकरणों को हल करने का नियम इस प्रकार है :axtC=by [9, VII, 1152 , 13671 हल निकालने की यह विधि आर्यभट्ट प्रथम, ब्रह्मगुप्त और भास्कर द्वितीय के नियमों पर आधारित है। यह विधियाँ विस्तारपूर्वक युश्क्येविच की पुस्तक में दी गई हैं। (1, पृ० 144-147) सामान्य नियमों के अलावा महावीर ने कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में हल निकालने की विधि भी बताई। "दो सोने की छड़ों में, जिनका भार क्रमशः 16 और 10 है, सोने की मात्रा अज्ञात है। लेकिन दोनों को मिला देने पर सोने की मात्रा 4 है । प्रत्येक छड़ में सोने की मात्रा क्या है ?" [9, VI, 188] यह प्रश्न निम्नलिखित अनिश्चित समीकरण में बदला जा सकता है :16x+10y-4 (16+10) यहाँ x और ' छड़ों में सोने की मात्रा है। सामान्य समीकरण इस प्रकार हुआ, ax+by=c (a+b) या, a(x-c)=bc-) इनका हल है, * =c+ y=c : इस समीकरण को हल करने का नियम इस प्रकार है : "सोने को दो अलग-अलग स्थानों पर रखें । छड़ों में सोने के ज्ञात भार को एक से विभाजित करके बारी-बारी से एक घटाने और एक जोड़ने पर सोने की मात्रा ज्ञात की जा सकती है।" इससे आगे महावीर लिखते हैं कि यदि स्वेच्छ मंख्या को पहली छड़ में सोने की मात्रा मानें तो दूसरी छड़ में सोने की मात्रा पहले की तरह मालूम की जा सकती है। [9, VI, 189] जैन प्राच्य विद्याएँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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