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मंगल व लोकोत्तम की भावना
शास्त्र को सिर पर ढोये चले जाते हैं, वैसे ही जैसे कुरान को कोई ढोता है, गीता को कोई ढोता है । यह महावीर के साथ ज्यादती है। ज्यादती इसलिए है कि महावीर ने कभी कहा नहीं कि शास्त्र में प्ररूपित धर्म। ऐसा भी नहीं कहा कि मेरे शास्त्र में कहा हुआ धर्म। लेकिन बड़ी कठिनाई है। और महावीर ने खुद कोई शास्त्र निर्मित नहीं किया। महावीर ने कुछ लिखवाया भी नहीं । महावीर के मरने के सैकड़ों वर्ष बाद महावीर के वचन लिखे गये। महावीर ने लिखवाया नहीं, लिखा नहीं ।
और भी कठिन बात है और वह यह कि महावीर ने कहा नहीं। वह जरा कठिन है। वह जरा कठिन है कि महावीर ने कहा नहीं । महावीर तो मौन रहे। महावीर तो बोले नहीं। तो महावीर की जो वाणी है, वह कही हुई नहीं, सुनी हुई है। महावीर का जो वह मौन, टैलिपैथिक ट्रांसमिशन है। और इसलिए बहुत पुराण जैसी लगती है बात, आपसे कहूं- कथा जैसी, लेकिन जल्दी ही सही वैज्ञानिक आधार उसको मिलते चले जाते हैं। महावीर जब बोलते, तो बोलते नहीं थे- . बैठते । उनको... अंतर आकाश में जरूर ध्वनि गूंजती। ओंठ का भी उपयोग न करते, कंठ का भी उपयोग न करते ।
का प्ररूपण
अगर मैसिंग, एक साधारण व्यक्ति, जो कोई अरिहंत नहीं है— अगर एक कागज के टुकड़े को सिर्फ अंतर्वाणी के द्वारा कह सकता है - यह टिकिट है' बोला तो नहीं, कहा तो नहीं, लेकिन टिकिट कलेक्टर ने तो, चेकर ने तो जाना, सुना कि टिकिट है। अगर एक कोरे कागज पर एक लाख रुपया दिए जा सकते हैं, तो पढ़ा तो गया, लिखा नहीं गया। ट्रेजरर ने पढ़ा तो कि लाख रुपये देने हैं। तो महावीर ने टैलिपैथिक कम्युनिकेशन का गहन प्रयोग किया। बोले नहीं, सुने गये। ही वाज हर्ड। मौन बैठे, पास लोग बैठे, उन्होंने सुना । और इसीलिए जो जिस भाषा में समझ सकता था उसने उस भाषा में सुना। इसमें भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है। क्योंकि हम जो भाषा नहीं समझते उसमें कैसे सुनेंगे? और जानवर भी इकट्ठे थे, पशु भी इकट्ठे थे और पौधे भी खड़े थे, और कथा कहती है- उन्होंने भी सुना ।
तो अगर बैक्स्टर कहता है कि पौधों के भाव हैं, और वे समझते हैं आपकी भावनाएं। आप जब दुखी होते हैं - पौधों को प्रेम करनेवाला व्यक्ति जब दुखी होता है तब वे दुखी हो जाते हैं। जब घर में उत्सव मनाया जाता है तो वे प्रफुल्लित हो जाते हैं। जब उनके पास खड़े होते हैं तो आनंद की धाराएं बहती हैं। जब घर में कोई मर जाता है तब वे भी मातम मनाते हैं। इसके जब अब वैज्ञानिक प्रमाण हैं तब क्या बहुत कठिनाई है कि महावीर के हृदय का संदेश पौधों की स्मृति तक न पहुंच जाए!
अभी सारी दुनिया में जो प्रयोग किये जा रहे हैं, अनकांशस पर, अचेतन पर, उनसे सिद्ध होता है कि हम अचेतन में कोई भी भाषा समझ सकते हैं- कोई भी भाषा ।
जैसे आपको बेहोश किया जाए, हिप्नोटाइज किया जाए गहन। इतना बेहोश किया जाए कि आपको अपना कोई पता न रह जाए तो फिर आपसे किसी भी भाषा में बोला जाए, आप समझेंगे।
अभी एक चेक वैज्ञानिक डा. राज डेक इस पर काम करता है- - भाषा और अचेतन पर। तो वह एक महिला पर, जो चेक भाषा नहीं जानती, उसको बेहोश करके बहुत दिन तक, उससे चेक भाषा में बातें करता था, और वह समझती थी। जब वह बेहोश होती है, उससे वह चेक भाषा में कहता है— उठकर वह पानी का गिलास ले आओ, तो वह ले आती है। बड़ी हैरानी की बात है। जब वह होश में आती, तब उससे कहे तो वह नहीं सुनती, समझ में नहीं आता। उसने उस महिला से पूछा कि बात क्या है? जब तू बेहोश होती है तब तू पूरा समझती है, जब तू होश में आती है तब तू कुछ भी नहीं समझती ।
उस महिला ने कहा- • मुझे भी थोड़ा-थोड़ा खयाल रहता है बेहोशी का, कि मैं समझती थी। लेकिन जैसे-जैसे मैं होश में आती हूं तो मुझे सुनाई पड़ता है, चा, चा, चा, चा और कुछ समझ में नहीं आता। तुम जो बोलते हो, उसमें चा, चा, चा, चा मालूम पड़ता
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