Book Title: Mahavira Vani
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: USA Jain Institute of North America

View full book text
Previous | Next

Page 262
________________ २८ पद्यनु आदिवाक्य विगिंच वितहं पि वित्तेण ताणं वित्तं पसवो विभूसा इत्थिसं १५३ २९ विभूसं पद्यनो अंक | पद्यनुं आदिवाक्य . पद्यनो अंक ९९ सयं समेच्च सरीरमाहु २२१ १०३ | सल्लं कामा १६६ | सवक्कसुद्धिं सव्वत्थुवहिणा सव्वभूयप्पभूयस्स २८४ ३८ सव्वस्स जीव८८ सव्वस्स समण१७० सव्वाहिं अणुजु१९१ सव्वे जीवा १२५ सव्वं विलवियं १५४ २४८ | सुइंच लर्बु १०६ २२७ सुवण्णरुप्पस्स १५० सुहसायगस्स ३०१ २६६ सोच्चा जाणइ २८६ २० सो तवो सोही उजुय ९८ २४९ संथारसेजा २४७ १९९ | संबुज्झमाणे संबुज्झह किं न १६४ १३ । संसारमावन्न विरई अबंभविवत्ती अविणीवेया अहीया न वेराइं कुव्वइ वोच्छिन्द सक्का सहेर्ड सद्दे रूवे य सईधयारसन्तिमे समयाए समया सव्वसम्मदिठ्ठी समावयंता समिक्ख समं च सयं तिवायए सुत्तेसु ६५ २३५ २७१ ४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

Loading...

Page Navigation
1 ... 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272