Book Title: Mahavira Vani
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: USA Jain Institute of North America

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Page 260
________________ १४१ २५४ १७८ पद्यनुं आदिवाक्य तिव्वं तसे तुलियाण तेउ-पम्हातेणे जहा तेसिं गुरूणं तं अप्पणा तं देहवार्स थंभा व कोहा दंतसोहणदाराणि सुया दिट्ट मियं दिव्व-माणुसदुक्खं हयं दुजए दुप्परिच्चया दुमपत्तए दुल्लहे खलु देव-दाणवधण-धन्नधम्मलद्धं धम्मो अहम्मो धम्मो मङ्गल २१३ पद्यनो अंक | पद्यनु आदिवाक्य पद्यनो अंक ३६ | धम्मं पि हु १२२ १९८ धीरस्स पस्स १९७ २४० न कम्मुणा २१० १०४ न कामभोगा न चित्ता न जाइमत्ते २७९ न तस्स जाई ३०६ न तस्स दुक्खं १७७ न तं अरी २१८ न परं वइजासि २७८ न य पावपरिक्खेवी न य वुग्गहियं २७२ १३४ न रूवलावण्ण न लवेज १६५ न वा लभेजा न वि मुंडिएण ११६ | न सो परिग्गहो | नाणस्स सव्वस्स २०६ नाणस्सावरणिज्ज २३३ ५० | नाणेणं जाणइ २३० २२३ | नाणं च दंसणं २२६, २३१ १ नामकम्म २३४ २६ २६१ २०९ २६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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