Book Title: Mahavir Charitra
Author(s): Motilal Hirachand Gandhi
Publisher: Motilal Hirachand Gandhi

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Page 229
________________ दिगंबर जैन. पोताना स्वभावथ पोते पोताना पतिने दुःखी करे छे अने तेथी उभयना जीवन विषमय बने छे ए विगेरेना ख्यालो ते अभागणी रूपसुंदरीने नहोतां. ne आवा प्रकारनी आ तरुणीनी स्थिति होवा छतां खेतरमां जवा माटे ते आज घरमांथी निकळी हती अने रस्तामां उपर जणावी गया, ते प्रमाणेनी हकीकत बनी आवी. तेणीने जेणे अटकावी हती ते तरुण पण राजगृहनगरीनोज रहेनार होई, ते एक भिक्षुकनो पुत्र हतो. व्हेनुं नाम जो के देवदत्त हेतु परंतु व्हेनी वर्तणुक अने आचरण जोई हेने 'दानवदत्त ' एज नाम विशेष शोभतुं हतुं, एवं कोईने पण जणाया सिवाय रहे नहीं ! रहेनो बाप जो के भिक्षुकनो धंधो करतो हतो, पण व्हेनी आर्थिक स्थिति बदल राजगृहनगरीना मोटा मोटा लक्ष्मीपुत्रो -- धनवानोने पण आश्चर्य लागतुं हतुं अने मोटा मोटा व्यापारीओने रात्रि - दिवस अथाग उथलपाथल करी नफा-नुकसाननी चिंतामां बळवुं पडतं हतुं. केटलाक व्यापारीओ व्हेनी आर्थिक स्थिति जोई, ' आपणे पण शरुआतथी आवा बीनजोखमी धंधामां केम पडया नहीं ?" एम बोलता हता. आ गृहस्थना नहीं भिक्षुकना धंधानो व्यवसाय एवा प्रकारनो इतो के, भोळा मनुष्य व्हेनी नजरे पडता के तरतज हेमनो शीकार करतो. कोई श्रीमंतनो पुत्र मांदो पडे, कोई

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