Book Title: Mahavir Charitra
Author(s): Motilal Hirachand Gandhi
Publisher: Motilal Hirachand Gandhi

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Page 254
________________ रुपसुंदरी . " गांडी ! केवा विचारमां पडी छे ? चाल, स्हवार थवाने बिल्कुल वार नथी, पछी निष्कारण वखत शामाटे गुमावे छे ? " ४३ 66 हवे तेणीने एम लगवा मांडयु के, आ कांई पोतानो पति नथी. आ कोईपण लुच्चो - लफंगो होवो जोईए. " तेणी पोताना मनसाथे विचार करवा लागी. " एकसरखा मुखाकृतिवाळा होय, तेथी शुं थयुं ? सरखा मुखना माणसो जगत्मां नथी शुं ! छे:! ते मात्र खात्रीथी नथी. छे: छे:! आवुं गांडपण व्हेना आखा जन्ममां पण देखायुं नहोतुं, पछी आटला अरघा कलाकना स्वभावमां आवो फरक केम पड्यो ? छे: बाई, अहीं कांई खास घोंटालो होबो जोईए ! कोई कोई वखत स्वर्गमांथी देव पण अनेक प्रकारना वेष लई कोई माणसना व्रतनी परीक्षा ले छे एम म्हें सांभळ्युं छ, त्यारे न जाणे रहेमांनोज कांई आ प्रकार होय ! ते गमे ते होय. जो आ म्हारो प्रत्यक्ष पति होय, तोपण म्हने जे अर्थे ते परकीय पुरुष होवा संबंधे संशय आवे छे ते माटे व्हेने पोताना शरीग्ने हाथ लगाडवा न देवो एज योग्य छे. पछी व्हेतर छे के ते प्रत्यक्ष पति पण होय ! आथी व्हेने गुस्सो पण आवे तो ते क्षणवार पछी दूर करतां आवडशे, परंतु जो म्हारुं चारित्र मलीन थयुं तो ते मात्र म्हने फरीथी उज्वळ करतां आवडशे नहीं. "

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