Book Title: Mahavir Charitra
Author(s): Motilal Hirachand Gandhi
Publisher: Motilal Hirachand Gandhi

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Page 267
________________ hravan.. रुपसुंदरी. उपर पण तिरस्कार छूट्यो, तथापि रुपसुंदरीनी बावतमां म्हारी घेलछा बिल्कुल कमी थई नहीं ! तेणीनी प्राप्ति केवी रीते करवी तेनी मन सुझ पड़े नहीं ! आवी स्थितिमा हुँ एक सरखो जंगले जंगले भटकतो हतो. एक दिवसे म्हारा सुदैवे पर्वतनी गुफामां एक महात्मा मळ्या. ते वखते तेमनी: सेवा करी रहे वानो निश्चय कर्यो. तेमनी सेवाथी थनार पुण्य प्राप्तिथी पण रुपसुंदरीनी प्राप्ति थशे एम म्हने लागवा मांडयुं. पछी हुं ते महात्मानी सेवा करतो तेमनी पासे घणाज दिवस रह्या, परंतु म्हारो ते नीच हेतु तेमने कहेवानी कदिपण म्हारी हिंमत थई नहीं." आवी स्थितिमा कर्मसंयोगे एक दिवस हुँ जागृत थई नोवा लाग्यो तो ते महात्मा-सिद्धपुरुष पोतानी तृणशय्या पर नथी ! तेओ क्यां गया, ते जाणवा सारु नीरखीनीरखीने जोवा लाग्यो, तो गुफानी छेवटनी टोच पर तेमनी मूर्ति दृश्यमान थई ! त्यां तेओ शु करे छे ते हुँ सुतांसुतांज जोवा लाग्यो. एक बखोलमाथी कोई वस्तु लई, ते तेमणे पोताना म्होंमां नाखता म्हने देखायु, पण ते साथे चमत्कार शुं थयो ? ते महात्मानुं एकदम रुपांतर थई, अत्यंत कुरुप व कुष्टरोगी एवो एक भीखारी बन्यो. आ प्रकार जोई म्हारा आश्चर्यनो पार रह्यो नहीं. पछी तेओ त्यांथी नीकळी गया, पण क्यां गया अने शुं कर्यु ते म्हने बिल्कूल हमजायु नहीं ! अगरते समजवानी म्हें दरकार पण राखी नहीं ! पछी बीजा दिवसे

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