Book Title: Mahavir Charitra
Author(s): Motilal Hirachand Gandhi
Publisher: Motilal Hirachand Gandhi

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Page 255
________________ दिगंबर जैन. आ विचार तेणीना मनमां आवतांज तेणीनो कांई नक्की विचार थयो अने ते साथे तेणी व्हेना. हाथने झाटको मारी ओरडीनी बहार नीकळी गई. ४४ पोतानो दाव साधवा माटे जे व्यवस्था द्युतकारे करी होय अने ते नष्ट थतां जे तेनी अवस्था थाय तेंवी स्थिति रुपसुंदरीना पतिनी थई ! ते त्यांथी न्हासेली जोई व्हेना शरीरमां भडको सलग्यो. दुःखथी, क्रोधथी अने पश्चातापथी व्हेनुं माधु फरवा लाग्युं, तथापि पोताना आ सर्व मनोविकार दबावाने ते तेणीनी पाछळ दोड्यो ! रुपसुंदरी ओरडीनी बहार नीकळतांज सासु-ससराना शयनगृहमा पेठी, एटलामां पण त्यां जई तेणीनो हाथ पकडी बहार खेंचवा लाग्यो. कदि पण नहीं अने आजे पोतानो पुत्र आटलो अमर्यादशील केम बन्यो, एनो ते वृद्ध युगलने संशय थयो ! बाकी ते पोतानो पुत्र नहीं होय एवी शंका लावा कोई कारण नहोतुं . " बेउने कांई प्रेमकलह थयो हशे, छोकरानी जात छे ! " एवो विचार ते वृद्धोना मनमां आववाथी, तेओए रुपसुंदरीने व्हेनी साथै जवा माटे कयुं, परंतु ते उपरथी रुपसुंदरी एकदम बोली :- " सासु बा ! अहीं कई पण दगा जेवुं जाय छे. हमे सारूं कहो के माटुं कहो, परंतु आ माणसने हुंम्हारा शरीरे हाथ अडकाडवा दईश नहीं ! पछी हमे बधां मळीने म्हारो जीव लेशो, तोपण बहेतर छे !" हवे तेणीनो संशय वधारे दृढ थयो.

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