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रुपसुंदरी.
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विद्या संपादन करी रुपिणीने ठेकाणे लाववी किंवा कोई वशीकरण मंत्र साध्य करी, तेणीने पोतानी बनाववी एवो म्हें । निश्चय कर्यो ! परंतु आ काममां पण म्हारी निराशाज थई ! लफंगा अने लुच्चा गोसांईओए मीठी मीठी थाप मारी म्हने घणो नचाव्यो अने घरबार बेची जे पैसा एकठा कर्या हता तेमांना धणाज खरची नांख्या ! तथापि आटलं थवा छतां पण रुपसुंदरीने वश करी लेवानो म्हारो नाद - विचार बिल्कुल ओछो थयो नहीं. आ कामी शरीरने शारीरिक त्रास पण घणोज सोसवो पड्यो ! आवा प्रकारनी विद्या जाणनार मनुष्य अमुक ठेकाणे रहे छे एम म्हने रहमजाय के टाढ तडको न जोतां त्या जतोज ! पछीथी गमे ते थाओ !!
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" ठीक, मांत्रिकोने गामोगाम शोधता फरवानो एटलोज त्रास म्हने भोगववो पडयो एम नहीं, पण ए विद्या साध्य करवा माटे जुदाजुदा मांत्रिको जे जूदीजूदी अगर एकज जातनी साधना करवाने म्हने कहेता ते करतां छतां पण फक्त कला त्रास करतां पण घणोज भयंकर त्रास सोसवो पडयो !" कोई नदीमा गळा जेटला पाणीमां बेसी मंत्र साधन करवा कहेतुं, त्यारे कोई स्मशानमां नग्नपणे उभा रही साधन करवा फरमावतुं ! कोईना साधनमां झाडे उंधा मस्तके टंगावानी जरुर पडती, त्यारे कोई मकीन पदार्थ खावा कहंतुं ! ग्रहण, अमावास्या अने शनिवार एटले आ साधवानो शुभ दिवस अने उत्कृष्ट मुहूर्त एटले रात्रिना बारनुज ठरेलं होय ! "
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