Book Title: Mahavir Charitra
Author(s): Motilal Hirachand Gandhi
Publisher: Motilal Hirachand Gandhi

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Page 236
________________ रुपसुंदरी . तमे तेनी तरफ नजर सुद्धां पण करता नथी ! म्हारा सुखनी वात एक बाजुए रहेवा द्यो, परंतु पोताना सुखनी बाबतमां तमे आटला बधा बेफिकर केम ? तमने पोताने कांईपण नहीं सूज्यं होय, पण आवी नानी वयमां आटली सुंदर अने सुकोमळ तमारी देह, टाढ, तडकामां दुःखी थयेली जोई म्हारा हृदयमां कांई कांई थाय छे ! महाराज, आवी तरुणावस्थामां आ मिथ्या (!) कंद्रमां फसाई आपना जीवना आवा हाल केभ करो छो ? तमारो मनमोहक च्छेरो अने सुंदर रूप जोई मारा जेवी सेंकडो स्त्रीओ रात्रिदिवस आपनी सवामां हाजर रहेशे. तमने मुखमांथी एक अक्षर पण काढवानी जरुर रहेशे नही, पछी महाराज, आम शा माटे करवुं पडे ? हं: हवे मौनव्रत छोडो अने आ दासीने पावन करो !! केम, आप हजु पण कांई बोलताज नथी ? नहीं नहीं, हवे हुं आपने छोडवानी नथी' एटलुं बोली ते पतीत प्रेमदाए ते निष्पापी मुनिवर्यनो हाथ झाल्यो. १५ आटला वखत सुधी तेनी वाचाळ चालु हती परन्तु मुनि तो स्वस्थ बेठा हता, पण ज्यारे तेणीए तेमना हाथने स्पर्श कर्यों के 'पतीत भगिनी ! आ शुं करे छे ?' एवा उद्गार ते शांत, निर्विकार अने निष्कलंक महात्माना मुखमांथी बहार पडया. आटलाज उद्गार, परन्तु तेनुं ते पतीत प्रेमदा उपर केतुं विलक्षण परिणाम थयुं ! तेणीए तरतज तेमनो हाथ छोडी

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