Book Title: Mahavir Charitra
Author(s): Motilal Hirachand Gandhi
Publisher: Motilal Hirachand Gandhi

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Page 238
________________ रुपसुंदरी. पछी तेनी इच्छा केम थाय आ उपरथी तुं म्होटा भ्रममा पीछे, ए हारा लक्षमा नथी आवतुं ! तारी साथे बोलवा बाबतमा एकलो भ्रम नहीं परन्तु दारुण अधःपात छे! इंद्रियवेदना समाववाना प्रयत्नमां विकृत मनने क्षणिक मळनारा आनंदमां सुख समजी, तुं आ केवु भयंकर विषपान करे छे, तेनी कल्पना पण छे के ? आ कार्यथी हारा आत्मानी केवी भयंकर स्थिति थशे, केवां दुःखो भोगवां पडशे, तेनो हे कदिपण विचार कर्यो छे ? कदि तेवो विचार आवे तो ते तरफ दुर्लक्ष करे छे ? व्यभिचारी जीवने परलोकमां भोगववानी भयंकर आपत्तिओनी कल्पना पण नथी शु? केम, बधुं तने खाटुं लागे छे ? सांभळ, आ विषयमां हने काईपण शंका मालूम पडती होय अने ते हारे जोवू होय तो क्षणभर हारी आंखो बंध करी स्थिर मनथी रहे, अने पछी रहने शुं देखाय छे ते कहे ! " रुपसुंदरीनुं मन ते महात्माना भाषणथी एटलं स्थिर थई गयुं हतुं हतुं के, ते वखते मनने स्थिर करवानी जरुर रही नहोती. तेणी ए महात्माना कह्या मुजब आंखो बंध करी थोडी वार उभी रही तेटलामांज तेणीए एक बूम पाडी अने 'महाराज ! म्हने बचावो, बचावो' एम कही तेमना पग उपर ढळी पडी. रुपसुंदरीने जीवंतपणामांज आ वखते जे नर्कनो भयानक देखाव देखायो, तेमां ते महात्मानु अलौकिक सामर्थ्य

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