Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 3
________________ परिचयात्मक भूमिका बालोचनात्मक सामग्री पुष्पदन्तका 'महापुराण' अथवा त्रिषष्टिपुरुषगुणालंकार, जो इस जिल्वमें है, के. ए. और पो. पाण्डुलिपियोंपर आधारित है। इनका पूर्णरूपसे मिलान किया गया है। कभी-कभी पाठको निश्चित करने के लिए, प्रभाव टिपणसे सहायता ली गयी है। मैं नीचे इस सामग्रीका सम्पूर्ण विवरण दे रहा है। १. 'के' इस पाण्डुलिपिका मेरी पहली जिल्द ७-८ पृष्ठोंपर पूरा विवरण है। उत्तरपुराणका हिस्सा क्रमांक २८९ से प्रारम्भ होता है, चूंकि आदिपुराण के दो पाठोंकी तुलनायें यह पाण्डुलिपि निश्चित रूपसे पुरानी है, अतः इस जिल्दके पाठोंकी रचनायें मैं इसपर 'निर्भर' रहा हूँ। यह खेदकी बात है कि मादिपुराणकी 'जी' पाण्डुलिपिसे मिलती-जुलती पाण्डुलिपि इस जिल्दके लिए प्राप्त नहीं की जा सकी। मैं यहाँ यह कह सकता हूँ कि उत्तरपुराणकी जो पाण्डुलिपियों मुझे ज्ञात हैं, बहुत पोड़ी हैं, धादिपुराणकी पाण्डुलिपियों की तुलना । २. 'ए' यह पाण्डुलिपि मुझे प्रोफेसर हीरालाल जैन, किंग एडवर्ड कॉलेज अमरावतीने, मास्टर मोतीलाल संघवी जैन सन्मति पुस्तकालय, जयपुरसे उपलब्ध करायी । इसमें ४२३ पन्ते हैं, जो १२ ईष लम्बे और ५ इंच चौड़े हैं । प्रत्येक पृष्ठ पर ११ पंक्तियों और प्रत्येक पंक्ति में लगभग ३६ अक्षर हैं। इस पाण्डुलिपि में अपने मूलरूप में वही पाठ हैं जो 'पी' में हैं, परन्तु फिर भी किसी दूसरी पाण्डुलिपिके आधारपर पाठ सुनार किया गया है, परन्तु वह मुझे उपलब्ध नहीं। इसका परिणाम यह है कि जो विभिन्न पाठ अंकित किये गये है वे संशोधित पाटोंके आधारपर हैं। आगे यह पाण्डुलिपि (B) मूल पाण्डुलिपिके पन्नोंखे बनी है कि जिसके कुछ पन्ने खो गये हैं, और (b ) कुछ वन पन्नोंसे बनी है जो भिन्न-भिन्न हाथोंसे लिखित नये पन्नों से बनी हैं, जो खोये हुए पश्नोंके स्थानपर जोड़े गये हैं । मेरा यह अनुमान, १८३-३८४ के पत्रांक के सन्दर्भ से समर्पित है जिसमें आघा पृष्ठ खाली है कि जिससे मैटर मूलभागके अगले पृष्ठ ३८५ के अक्षरसे प्रारम्भ किया जा सके। इस प्रकार जोड़े गये पृष्ठों में प्रति पृछपर नी पंक्तियां हैं, प्रत्येक पंक्ति में लगभग ३८ अक्षर हैं। इस पाण्डुलिपिके पाठ, 'के और पी' प्रतियों के पाठों से भिल है, यह इस सम्यसे स्पष्ट है कि इसमें ४६, ४७, ४८ ( पहली जिल्दकी भूमिका पु. २७ देखिए ) प्रशस्तिछेद हैं. जो उत्तरपुराणकी किसी भी पाण्डुलिपिसे नहीं मिलते। यह पाण्डुलिपि इस प्रकार प्रारम्भ होती है न नमः वीतरागाय, बमहो भालयसामिहो और अन्त इस प्रकार है 'इस महापुराणे तिसट्टिमहापुरुसगुणालंकारे महाकपुष्पमंतविरार महाभववभरहाणुमण्णिए महाकच्चे दुउत्तरसयमो परिच्छेत्रो समत्ती । संधि १०२ । इति उत्तर पुराण समाप्ता । शुभमस्तु | कल्याणमस्तु । संवत् १६१५ वर्षे, माषादि ६ सुक्रवासरे उत्तरपुराणं समतं । बाईको पठनार्थ ज्ञानावरणी कम्म खयार्थ ग्रंथ संख्या ॥ १२००० ॥ यद्यपि, यह अन्तिम पृष्ठ मूल पाण्डुलिपिका मूल पृष्ठ नहीं है, बल्कि गया लिखा गया है। इस पुष्पिका के अनुसार पाण्डुलिपिकी तिथि माघकी छठ है, वि. संवत् १९१५ की, जो १५५८, सवोके लगभग है । (पी) दवन कालेज के संग्रहकी इस पाण्डुलिपिका क्रमांक ११०६ - १८८४-८७ है, वो अब भण्डारकर संस्थान पूनामें जमा । इसमें ६८१ प हैं, जो ११ + ४३ इंच हैं, प्रत्येक आठ पंक्तियाँ

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