Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 11
________________ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे २. मिच्छ० उ० बं० सोलसक० -णवूस-अरदि-सोग-भय०-दु० णिय० बं० । तं तु छट्ठाण । एवं सोलसक०-पंचणोक० । इत्थि० उ० बं० मिच्छ०-सोलसक०अरदि-सोग०-भय०-दु० णि. बं० अणंतगुणहीणं बं० । एवं पुरिस० । हस्स० उक्क० बं० मिच्छ०-सोलसक०-भय०-दु० णियमा बं० अणंतगुणहीणं बं० । इत्थि०-णqस० सिया बं० सिया अबं०। यदि बं० णि० अणु० अणंतगुणहीणं । रदि० णिय० तंतु०। एवं रदीए। ३. णिरयगदि० उ० ब० पंचिंदि०-वेवि०-तेजा-क०-वेउव्वि०अंगो०-पसत्थ० ४-अगु०३-तस०४-णिमि० णि. बं० अणंतगुणहीणं बं०। हुंड०-अप्पसत्थ०४णिरयाणु०-उप०-अप्पसत्थ०-अथिरादिछ० णि० बं०। तं तु० छहाणपदिदं । एवं णिरयाणु। २. मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव सोलह कवाय, नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साका नियमले बन्ध करता है। किन्तु वह इनके उत्कृष्ट अनुभागका भी बन्ध करता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी बन्ध करता है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है, तो वह उनके उत्कृष्ट अनुभाग बन्धकी अपेक्षा छह स्थान पतित अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है। इसी प्रकार सोलह कपाय और पाँच नोकवायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। स्त्रीवेदके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव मिथ्यात्व, सोलह कषाय, अरति, शोक, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु बह इनके अनन्तगुणे हीन अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है। इसी प्रकार पुरुषवेदकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। हास्यके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनके अनन्तगुणे हीन अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् नहीं बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है,तो नियमसे इनके अनन्तगुणे हीन अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है। रतिका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह उसके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी बन्ध करता है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है,तो वह उसके उत्कृष्ठ अनुभाग बन्धकी अपेक्षा छह स्थान पतित अनुत्कृष्ट अनुभागका वन्ध करता है। इसी प्रकार रतिको मुल्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। ३. नरकगतिके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव पश्चन्द्रिय जाति, वैक्रियिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वैक्रियिक आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघु तीन, त्रसचतुष्क और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनके अनन्तगुणे हीन अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है। हुण्ड संस्थान, अप्रशस्त वर्ण चतुष्क, नरकगत्यानुपूर्वी, उपघात. अप्रशस्त विहायोगति और अस्थिर आदि छहका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनके उत्कृष्ट अनुभागका भी बन्ध करता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी बन्ध करता है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है, तो वह इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धकी अपेक्षा छह स्थान पतित अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है। इसी प्रकार नरकगत्यानुपूर्वीकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। १. ता-श्रा०प्रत्योः 'रदि० णिय.' इत श्रारभ्य 'णिमि० णि०० अणंतगुणहीणं ०' इति यावत् पाठस्य पुनरावृत्तिः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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