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सिरिभगवंतभूदबलिभडारयपणीदो
महाबंधो तदियो अणुभागबंधाहियारो
१५ सणिणयासपरूवणा १. सणियासं दुविहं-सत्थाणं परत्थाणं च । सत्थाणं दुवि०--जह० उक० । उक्कम्सए पगदं । दुवि०-ओघे आदे० । ओघे० आभिणिबोधियणाणावरणस्स उक्कस्सयं अणुभागं वंधतो चदुणाणावरणीयं णियमा बंधगो तं तु उक्कस्सा वा अणुकस्सा वा। उक्कस्सादो अणुकस्सा छटाणपदिदं वंधदि अगंतभागहीणं वा ५ । एवमण्णमण्णाणं । णिदाणिक्षाए उक्क० वं० अहदंस० णियमा वं० । तं तु छहाणपदिदं बंधदि । एवमण्णमण्णाणं । साद० उ० वं. असाद० अवंधगो । असाद • उ० बं० साद० अवंध० । एवं आउ-गोदं पि।
१५ सन्निकर्षमपणा १. सन्निकर्प दो प्रकारका है-स्वस्थान सन्निकर्ष और परस्थान सन्निकर्प। स्वस्थान सन्निकर्प दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्णका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे आमिनिवाधिकज्ञानावरणके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव चार ज्ञानावरणका नियमसे वन्ध करता है। किन्तु वह इनके उत्कृष्ट अनुभागका भी वन्ध करता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी वन्ध करता है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका वन्ध करता है,तो वह उनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धकी अपेक्षा छह स्थान पतित अनुत्कृष्ट अनुभागका वन्ध करता है। या तो अनन्तभागहीन अनुभागका बन्ध करता है या असंख्यात भागहीन या संख्यातभागहीन या संख्यातगुणहीन या असंख्यातगुणहीन या अनन्तगुणहीन अनुभागका बन्ध करता है। पाँचों ज्ञानावरणोंका इसी प्रकार परस्पर सन्निकप जानना चाहिए। निद्रानिद्राके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव आठ दर्शनावरणका नियमसे बन्ध करता है, किन्तु वह इनके उत्कृष्ट अनुभाग का भी बन्ध करता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है तो वह उनके उत्कृष्ट अनुभागवन्धकी अपेक्षा छह स्थान पतित अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है। सब दर्शनावरणोंका परस्पर इसी प्रकार सन्निकर्प जानना चाहिए। सातावेदनीयके उस्कृष्ट अनुभागका वन्ध करनेवाला जीव असातावेदनीयका बन्ध नहीं करता है। असातावेदनीयक उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव सातावेदनीयका बन्ध नहीं करता है। इसी प्रकार आयु और गोत्र कर्मके विषय में भी जानना चाहिए।
१. ता० प्रती अणुभागा (गं) चदु- इति पाठः।
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