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महावीर
[७३] शाम में से सत्य को खोज निकालना यासान काम नहीं है। शामपरीक्षा के लिए कहा गया है कियथा चतुर्मिः कनकं परीक्ष्यते निघर्षण-छेदन-ताप-ताडनैः। तथैव शास्त्रं विदुषा परीक्ष्यते श्रुतेन शीलेन तपोदयागुणैः ॥
अर्थात् जिस प्रकार सोने की परीक्षा घर्षण, छेदन, तापन और ताडन इन चार रीतियों से होती है उसी प्रकार शाम की परीक्षा श्रुत, शील, तप और दया इन चार गुणों से होती है। परन्तु इस परीक्षा में भी कितनी ही झंझटें हैं । इसी लिए मुनिमी कहते हैं कि-" शाम की उत्पत्ति अनुभव में से होती है, परन्तु शान से सीधा अनुभव नहीं मिलता। शास्त्रोपदेश के योग्य परिशीलन के पश्चात् भी मुमुक्षु जब अन्तर्योग की साधना का मार्ग ग्रहण करता है तब उसके विकास में से, शास्त्रों में से न मिल सके ऐसा अनुभव उसे प्राप्त होता है। इस प्रकार के उज्ज्वल अनुभव में से लोकप्रकाशरूप पवित्र शास्त्रों का सर्जन होता है। इस तरह अनुमव का स्थान बहुत ऊंचा है । शास्त्र-प्रन्थ की भूमिका से मी उसका स्थान अत्युनत है।" [पृ. ३९२]
वे यह भी कहते हैं कि-"कुलाचार से जो जैन, बौद्ध, अथवा वैष्णव है, उसकी उतनी महत्ता नहीं है। परन्तु जो सका के साथ बुद्धिपूर्वक बैन, बौद्ध अथवा वैष्णव है, अर्थात् जैमन, बौद्धस्स मोर वैष्णवस्व के उच्च एवं विशुद्ध भादर्श पर जो का, बौद्ध और वैष्णव है वही सबा बैन, बौद मौर बैग्णव है, क्योति
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