Book Title: Maha Manav Mahavir
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Tapagaccha Jain Sangh

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Page 77
________________ [२] महामानव "इस सब का फलितार्थ यही है कि बनीति-अन्यायअसंयमरूप दुश्चरित की हेयता में तथा नीति-न्याय-संयमरूप सच्चरित की उपादेयता में विशुद्ध समझ, विशुद्ध विश्वास होने का नाम ही सम्यग्दर्शन, सम्यक्त्व अथवा तत्त्वार्थश्रद्धान है। इसके विस्तृत प्रचार के प्रभाव से मानव-समाज में फैली हुई विलासलम्पटता, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, सत्ता-अधिकार, गुरुडमवाद के भयंकर झंझावात के अतिविषम आक्रमण पर संवर्धित अनीतिअन्याय-अत्याचार व शोषण की भयानक बदी और ऊंच-नीचमाव के समाजशोषक उन्मादक रोग नष्ट-भ्रष्ट हो कर अहिंसा, सत्य, आवश्यक परिमित परिग्रह, समदृष्टि तथा प्राणिवात्सल्य के सर्वोदयसाधक सद्गुणों के आलोक से यह लोक आलोकित हो कर स्वर्ग का भी स्वर्ग बन सकता है।" तेरापंथी आचार्य श्री तुलसी भी आजकल अपने प्रवचनों में धर्म के ऐहिक दृष्टिकोण पर जोर दे रहे हैं, हालांकि उनकी सम्प्रदाय का लक्ष्य अब तक मोक्षधर्मोपदेश देना ही रहा था और आज मी है ऐसा कहा जाता है । ऐहिक दृष्टिकोण की बात तक करना साधु के लिए तेरापंथ सम्प्रदाय में वयं ही पहले था ऐसा मी कहा जाता है। सत्य के लिए शास्त्र है, न कि शास्त्र के लिए सत्य धर्माचार्य उपदेशों में सदा ही शाम की दुहाई देते हैं और तदनुसार आचरण का आग्रह करते हैं । परन्तु तथाकथित प्रत्येक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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