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महामानव
तप-त्याग के सद्गुणों के पूर्ण उत्कर्ष से प्रकाशित वीतराग भगवान् की ध्यानस्थ मूर्ति में वीतरागता के साथ असंगत हो, वीतराग मुनि के लिए अयोग्य हो ऐसा दिखावा नहीं लाना चाहिए।"
अधिक विवेचन कर आलोचना को लंबा करना अनु. चित होगा। पुस्तक की प्रत्येक पंक्ति आज के युवक की शंकाओं का समाधान और उसकी अपने कुलधर्म के प्रति शिथिल हुई श्रद्धा स्थिर करने में सहायक होगी यह मेरा दृढ़ विश्वास है । चार रुपए के सस्ते मूल्य में मिलनेवाली इस पुस्तक को खरीद कर कम से कम दो बार पढ़ने की स्थिरता वे दिखावें यही प्रार्थना है।
समस्त जैनदर्शन का षट् खण्डों में विचार किया गया है बो इस प्रकार है:-प्रथम खण्ड : तत्त्वविचार जिसमें नौ तत्त्व, आठ कर्म, चतुर्विध बन्ध के हेतु, निर्जरा और मोक्ष का विवेचन किया गया है। द्वितीय खण्ड : मोक्षमार्ग जिसमें साधुधर्म, गृह. स्थधर्म, सम्यक्त्व, ज्ञान के मेद, गुणश्रेणी अथवा गुणस्थान, मध्यात्म, भावना, बन्धमोक्ष, बैन-जेनेतर दृष्टि से आत्मा, कर्म की विशेषता, जैन आचार, षट्कर्म, ध्यान आदि का विवेचन है। इस खण्ड की पृष्ठसंख्या १७३ है और प्रथम खण्ड की ५७ । तीसरे खण्ड का विषय है प्रकीर्णक और इसके भी १७३ ही पृष्ठ हैं जिनमें निम्नलिखित २. विषयों पर विचार किया गया है:-१ कल्याण के द्वार सब के लिए खुले हैं, २ देव-गुरु-धर्म, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com