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महामानव कर दी जाएगी। अनुवादक जैनदर्शनाचार्य, जैनागम-प्राचीनन्यायशास्त्री श्रीशान्तिलाल मणिलाल बी. ए. भी धन्यवादाह है। श्रीहेमचन्द्राचार्य जैन सभा, पाटण-गुजरात के भी हम उपकृत है कि जो मुनिश्री के उपयोगी साहित्य के प्रकाशन का भार उठा रही है। हम आशा करें कि वह मुनिश्री के अन्य उपयोगी प्रन्थ मी राष्ट्रभाषा हिन्दी में प्रकाशित कर उसकी श्रीवृद्धि करेगी । राष्ट्रभाषा की श्रीवृद्धि करना हम भारतवासियों का आज परम पुनीत कर्तव्य है।
१५, डोवर रोड,
कलकत्ता-१९ ताः २० सितम्बर, १९५७।।
-कस्तुरमल बाँठिया
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