Book Title: Maha Manav Mahavir
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Tapagaccha Jain Sangh

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Page 80
________________ महावीर [७५] दोषों से मुक्त करने का यथाशक्य प्रयत्न करना वस्तुतः मुक्ति का ही प्रयत्न है। इस प्रकार की मुक्ति सच्चे ज्ञान-शिक्षण के प्रमाव से मिलती है, अथवा जो ज्ञान, शिक्षण इस प्रकार की मुक्ति की साधना में उपयोगी होता है, वही वास्तविक ज्ञान, शिक्षण है। "सा विद्या या विमुक्तये" यह प्राचीन आर्ष स्त्र कहता है कि वही विद्या है जो बन्धनों से मुक्त करे, अर्थात् जो आर्थिक, सामाजिक, राजकीय तथा बौद्धिक दासता में से छुड़ा कर मनुष्य को बलवान् , विवेकी, प्रवृत्तिशील, परोपकारपरायण तथा सद्गुणी बनाए वही विद्या है। इस प्रकार की मुक्ति का संबंध अन्तिम आध्यात्मिक मुक्ति के साथ है। ........ बाह्य और आभ्यंतर दोनों प्रकार की मुक्ति जो प्रदान करे अथवा उस प्रकार की मुक्ति के मार्ग की ओर जो ले जाए वही वास्तविक शिक्षण है। ऐसे उज्ज्वल शिक्षण द्वारा जो जीवनविकास सधता है वही जीवन्मुक्ति की साधना है, जो अन्ततः परममुक्ति की समर्पक होती है।" [ पृ. ४०७-४०९] दार्शनिक मतवाद और क्रियाकाण्ड ही धर्म नहीं है मुनिजी पृ, ३९८ में लिखते हैं कि “धार्मिकता का नाप धर्म से [ जीवन धर्म के निर्मल रंग से जितना रंगा हो उस पर से ] होता है, न कि दार्शनिक पटुता अथवा क्रियाकाण्ड के बाह्य आचरण पर से। इसी तरह यह भी स्पष्ट है कि जीवन का उद्धार एकमात्र धर्म से [ अहिंसा-सत्यरूप सद्धर्म के पालन से ] ही शक्य है, कोरे दार्शनिक मन्तन्यों के स्वीकार से अथवा केवल क्रियाShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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