Book Title: Magnopnishad
Author(s): Yashovijay Gani, Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 14
________________ परब्रह्मणि मग्नस्य, श्लथा पौद्गलिकी कथा । क्वामी चामीकरोन्मादाः, स्फारा दारादराः क्व च ? ॥४॥ 69 C Aloo जो परम ब्रह्म के परमानंद में मग्न है, उसके वचन में पुद्गलों की तुच्छ बातें कैसे आ सकती हैं? सुवर्ण-समृद्धि के प्रति उसका पागलपन भी कैसे हो सकता है? एवं कामिनी के प्रति उसका लगाव भी कैसे हो सकता है?

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