Book Title: Magnopnishad Author(s): Yashovijay Gani, Kalyanbodhisuri Publisher: Jinshasan Aradhana Trust View full book textPage 20
________________ शमशैत्यपुषो यस्य, विप्रुषोऽपि महाकथा। किं स्तुमो ज्ञानपीयूषे, तत्र सर्वाङ्गमग्नताम् !।।७।। ज्ञान एक ऐसा अमृत है, जिसके एक बूंद की भी भारी महिमा है। वह भी प्रशमसुख की शीतलता की पुष्टि करता है। तो फिर उस ज्ञानामृत में जो सर्वांग निमग्नता हो, उसकी तो हम क्याँ प्रशंसा करे?Page Navigation
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