Book Title: Magnopnishad
Author(s): Yashovijay Gani, Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 18
________________ ज्ञानमग्नस्य यच्छर्म, तद् वक्तुं नैव शक्यते। नोपमेयं प्रियाश्लेषै- पि तच्चन्दनद्रवैः।।६।। जो ज्ञान में मग्न है, उसके सुख का वर्णन करना मुमकिन नहीं है, यह सुख इतना कल्पनातीत है, कि न तो इसे प्रिया के आलिंगन जैसा कह सकते हैं, न ही चन्दन रस के विलेपन जैसा कह सकते हैं।

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