Book Title: Magnopnishad
Author(s): Yashovijay Gani, Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 16
________________ भगवतीसूत्र आगम आदि शास्त्रों में कहा है, कि श्रमण के संयमपर्याय की । जैसे जैसे वृद्धि होती है, वैसे वैसे उसकी तेजोलेश्या की भी वृद्धि होती है, उसका सुख बढ़ता ही जाता है, यह बात है परमब्रह्म में निमग्न साधक की। तेजोलेश्याविवृद्धिर्या, साधोः पर्यायवृद्धितः। भाषिता भगवत्यादौ, सेत्थम्भूतस्य युज्यते।।५।।

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