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ग्रंथमाळामां डॉ. सांडेसराना शब्दकोशो छे ज. डॉ. भायाणीनी प्रमाणभूतता तो अनन्य जेवी छे. आधार विना के अटकळे ए कशुं न आपे. डॉ. सांडेसराए पण पोतानी सघळी सज्जता कामे लगाडीने ने प्रमाणमां विस्तृत शब्दकोशो आपेला छे. 'गुर्जर रासावली' मां मधुसूदन मोदीए पण केवो मोटो शब्दकोश आपेलो छे ! आ बधुं अंके करी लेवा जेवुं खरुं ज. आ सामग्री आमतेम वेरविखेर पडी रहे तेना करतां आवा कोश रूपे संकलित थाय त्यारे ज एनी खरी उपयोगिता सिद्ध थाय. आ कोशनी आ एक सार्थकता छे.
आम आ कोश पासे केटलीक उत्तम सामग्री आवी छे अने चकासवा-सुधारवानी मोटी कामगीरी पण एने करवानी थई छे. काम करता-करतां संपादकनी नजर घडाती गई अने शंकानां स्थानो वधारे ने वधारे पकडावा लाग्यां. भेगां थयेलां घणा संदर्भो अने कोशी वगेरेमांथी चावीओ जडती गई अने डॉ. प्रबोध पंडित, डॉ. भायाणी अने डॉ. सांडेसरा जेवा आपणा प्रथम पंक्तिना विद्वानोए आपेला अर्थोने छोड़वा-सुधारवानुं पण क्यांक -क्यांक एमनाथी घणा नाना आ संपादकने हाथे बन्युं जे आ कोश-रचना माटे स्वीकारेली पद्धतिनी सार्थकतानी निशानीरूप गणाय. चकासणी अने शुद्धिनी प्रक्रिया केवी झीणवट ने तीव्रताथी चाली छे ए ए परथी समजाशे के मारा पोताना ताजा ज संपादन 'आरामशोभा रासमाळा' ना थोडाक शब्दार्थो पण अहीं सुधारवाना थया छे.
आम थतां कोशनुं काम संकलन करतां वधारे तो संशोधननुं बनी गयुं. केटलीक वार तो एकएक शब्द माटे अनेक साधनो फंफोसवानां थयां. डॉ. भायाणी मने सतत थोडोक वारता रह्या. केटलाक शब्दो पाछळ महेनत करवी वृथा हती एम ए सूचवता रह्या, परंतु हाथवगां साधनोमां फरी वळवानो लोभ हुं खाळी शक्यो नहीं, भले केटलीक वार एनुं परिणाम शून्य ज आव्युं. संपादकीय कामगीरी आम विस्तरती गई तेम मारो श्रम वधतो गयो अने समय लंबातो गयो. एक वर्षमां जे कार्य करवा धार्युं हतुं ने सात वरस थयां ! केटला कलाको में आ कोशरचना पाछळ आप्या छे तेनो तो कोई हिसाब ज नथी. केटलीक वार तो दिवसना आठदश कलाक पण कोशना काम पाछळ मंड्यो रह्यो पुं. पण मने एनो थाक कदी वरतायो नथी. ऊलटुं, मध्यकालीन शब्दोनी दुनिया में आश्चर्यवत् जोई छे ने एनी गलीकूंचीओमां भटकवानो में आनंद माण्यो छे. मारे माटे तो मारा कामनुं आ ज खरुं वळतर बनी रह्युं छे.
एक संशोधित ने शक्य तेटलो प्रमाणभूत कोश आपी शक्यानो मने उमंग छे. मारी जिंदगी आ एक मोटुं अने वघु टकाउ काम हुं गणुं हुं छतां मारा कामने मर्यादाओ वळगेली छे ए हुं समजुं छं. डॉ. भायाणीनी जेवी नजर पहोंचे तेवी मारी न ज पहोंचे. भ्रष्ट पाठ पकडायो न होय, अर्थ बराबर न होवानी शंका ज न गई होय के में सुधारेला
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