Book Title: Madhyakalin Gujarati Shabdakosha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अने बनावट पण एमां छे, जेमके चोखानी ३० जेटली जातो, लाडुना ५० जेटला प्रकारो अने १०० जेटलां शाक. केटलीक वानगीओ केम बनावाय छे तेनी प्रक्रिया वर्णवाई छे तेमज भोजननी बेठकव्यवस्था अने पिरसणविधिनां मनोरम चित्रो आलेखायां छे. आ वर्णको उपरांतनों बीजो घणो रसिक सांस्कृतिक संभार मध्यकालीन कृतिओमां सचवायेलो छे. पण सामान्य रीते एने बाजु पर राखीने ज कृतिनो आस्वाद करवा आपणे ठेवायेला छीए तेथी घणी वीगतो आपणा लक्ष बहार रहे छे. नरसिंह महेता जेवा आपणा प्रियतम कविनां पदोमां रहेली वैष्णव परंपरानी केटलीक लाक्षणिक सांस्कृतिक रेखाओने ओळखवा आपणे प्रयास कर्यो नथी ने एथी काचां अर्धघटनो पर निर्भर अधूरा काव्यास्वादोथी आपणे रीझ पामीए छीए. मध्यकालीन गद्यसाहित्यनी समृद्धिथी तो आपणे अजाण जेवा छीए. मोटा भागनी कृतिओ तो हजु प्रकाशनी राह जोती हस्तप्रतभंडारोमां दटायेली पडी छे. एमां कथावार्ता, चरित्र, तीर्थ- इतिहास, गच्छा-परंपरा, धर्मोपदेश, आचारविधि, तत्त्वज्ञान, योग, गणित, ज्योतिष, सामुद्रिकशास्त्र, शकुनशास्त्र, कोकशास्त्र, रमलतंत्र, वैदक, शिल्प, अलंकारशास्त्र, व्याकरण, कोश, संगीतविद्या आदि अनेक विषयो खेडायेला जोवा मळे छे. गद्यसाहित्य बहुधा बालावबोधो रूपे - संस्कृत - प्राकृत - गुजरातीना कोई मूल ग्रंथना विवरण रूपे - जैन साधुकविओ पाथी प्राप्त थाय छे एटले जैन शास्त्रोनी एमां प्रधानता होय ए समजाय एवं छे पण उपर नोंधेला विविध विषयोना अने 'भगवद्गीता' 'अमरुशतक' जेवी कृतिओना बालावबोधोनी पण एमां समावेश छे ए आ गद्यसाहित्य द्वारा केवी व्यापक ज्ञानोपासना थई छे अने लोकशिक्षणनो केवो मोटो उद्यम थयो छे ए बतावे छे.
मध्यकालीन साहित्यनी देखीती एकविधतानी नीचे जिवाता जीवननां अने जगतज्ञाननां केवां वैविध्योने अवकाश मळ्यो छे एनुं आ दिग्दर्शनमात्र छे. हस्तप्रतभंडारोमां दटायेलुं मध्यकालीन साहित्य हजु बहार आवशे अने एनो सूक्ष्मताथी, गहनताथी अने सर्वांगीपणे अभ्यास थशे त्यारे एना वैविध्यनी आपणने कदाच वधारे प्रतीति थशे.
बारमाथी ओगणीसमा सैका सुधीना सातसो वरसना गाळामां सैकावार जे विपुल साहित्य गुजराती भाषामां मळे छे ए जगतसाहित्यमां एक विरल घटना छे. भाषाविकासनुं अने भाषाभिव्यक्तिनी कलानुं एक समृद्ध चित्र एमांथी आपणने मळे छे. एनां शब्दराशि, रूढिप्रयोगो, वाक्यछटाओ, वाग्भंगिओ - सर्व कंईमां आपणा रसविषय बनवानी क्षमता छे. ए भाषाजगतनो विहार कौतुकभर्यो बने तेम छे. आपणे अखाभगत के प्रेमानंदनी वाक्शक्तिने पिछानीए छीए अने एना पर वारी जईए छीए, पण सातसो वरसना साहित्यना भाषावैभवने प्रत्यक्ष करवो आपणे बाकी छे. ए मोटो पुरुषार्थ मागे पण ए पुरुषार्थनुं पूरतुं वळतर मळी रहे तेवो ए वैभव छे. एना शब्दजगतनी कंईक झांखी अहीं रजू
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