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('भिल-') आपेल छे. आ स्थितिमा सामान्य रीते कोई एक ज रूप स्वीकारवान राख्यु छे, बहुधा 'भिलइ' ए वर्तमानकाळ, रूप, तो केटलीक वार विध्यर्थकृदंतवाढू रूप के मूळ धातु. आम छतां अहीं पण कोई एक ज रूप प्राप्त थयुं छे त्यां एम ने एम राख्यं छे अने आवश्यकता जणाई त्यां एकथी वधु रूपो पण रहेवा दीधां छे.
एक ज रूप अंत्य स्वरना भेदथी पण आवी शके छे, जेमके 'पूगई' 'पूगे' 'पूर्ण'. आq बन्यु छे त्यां सामान्य रीते जूनुं 'पूगइ' ए रूप आपवा- राख्युं छे ने आवश्यकता जणाई त्यां रूपभेद साचव्या पण छे.
रूपभेद के जोडणीभेदनुं आईं सरलीकरण के एकीकरण करीए एटले एक कोयडो तो ऊभो थाय. एकीकृत रूपनी सामे आधारग्रंथो तो बधा निर्देशाय, जेमां वास्तविक रीते ए एकीकृत रूप नहोतुं, जुदां रूपो हता. एथी जे-ते ग्रंथमा ए शब्द शोधवामां अगवड ऊभी थाय. 'भिल्यउ' 'भिलइ'मां समाई जाय एटले जे ग्रंथमां 'भिल्यउ' होय त्यां पण आपणे 'भिलइ' ज शोध्या करीए अने ए आपणने न मळे. आपणे याद राखवू पडे के क्रियापदरूप अन्य पण होई शके छे. आ अगवडमांथी बचवानो कोई रस्तो नहोतो ने संकलित कोशथी आगळ जनार जूज अभ्यासीओने ज आ अगवड वेठवानो वारो आवशे एवी समजण रही छे, तेथी रूपवैविध्य टाळीने कोई एक ज रूप आपवामां कशो बाध मान्यो नथी.
क्रियापदोमां, अलबत्त, कर्मणि, प्रेरक ने कृदंतनां रूपो अलग साचव्यां छे. मूळभूत रीते शब्द अत्यारे वपराशमां होय त्यां पण आ रूपो अत्यारथी जुदां पडतां देखायां तो ए खास साचव्यां छे. जेमके ‘रहइ' लेवानी जरूर नहीं, पण 'रहतउ' (अत्यारे 'रहेतो'), 'रहितउं' "रहीतूं' 'रहीइ' (कर्मणि), 'रहिवउं' 'रहाविउ' ए रूपो लीधां छे.
(११) ज्यां एक ज लिंग, रूप मळ्युं छे त्यां एम ने एम राख्युं छे, परंतु भिन्नभिन्न लिंगनां रूपो मळ्यां त्यां एक ज लिंगनू - सामान्य रीते नपुंसकलिंग, रूप राख्युं छे. आम छतां आवश्यकता लागी त्यां भिन्नभिन्न लिंगनां रूपो साचव्यां छे.
एक नियम तरीके आq बधुं विचारेलुं छे, छतां, आरंभमां कयुं तेम, एमां सो टका एकरूपता रही हशे एवी खातरी आपी शकाय तेम नथी. थयुं छे एवं के साव प्राथमिक तबक्के मारा अंगत रसथी हुं प्राप्त शब्दकोशोमांथी कार्ड करावतो हतो त्यारे उच्चारभेदवाळा तथा संस्कृत अने अन्य घणा मने परिचित लागता शब्दो काढी नाखतो हतो. पछीथी प्राकृत जैन विद्याविकास फंडने आश्रये में विधिसर रीते योजना हाथमां लीधी त्यारे शब्दपसंदगीनी बाबतमां डॉ. हरिवल्लभ भायाणीनी साथे चर्चा करी. एमणे थोडा उदार थवानी भलामण करी. खास करीने एटला माटे के आपणे त्यां मध्यकालीन भाषानुं ज्ञान घणुं ओर्छ छे ने थोडा वधु शब्दो हशे तो ए उपयोगी थशे ज. आम जे
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