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राजस्थानी अने गुजराती कोशोनी भरपूर मदद लीधी छे. आ कोशोए कोई वार शब्दना अर्थने आबाद उघाडी आप्यो छे. अलबत्त, शब्द त्यां उच्चारभेदथी पडेलो होय ने एना सुधी पहोंचवा मथामण करवी पडी होय एवं बन्युं छे. डॉ. भायाणीनी शब्दचर्चाओ-शब्दकथाओ, डॉ. सांडेसरानां लेक्सिकोग्रेफिकल स्टडिझ इन जैन संस्कृत ने वर्णकसमुच्चय जेवां संपादनो, वनस्पतिकोशी, जैनधर्मविचारना ग्रंथो वगेरे प्रकारनां केलांक इतर साधनोनो पण वारंवार उपयोग कर्यो छे अने ए उपयोग सार्थक पण थयो छे. डॉ. भायाणीना परामर्शननो लाभ वारंवार लीधो छे ते उपरांत जुदाजुदा विषयना केटलाक जाणकारोने पूछवानुं पण अवारनवार बन्युं छे. आ संपादकनी पोतानी मध्यकालीन भाषासाहित्यनी जाणकारी पण केटलेक स्थाने काम आवी होय. एक ज शब्द माटे अनेक साधनोमां खांखांखोळां करवा पड्या छे ने अंते संपादके पोतानां सूझ अने विवेक वापरवा पड्यां छे एवं पण बन्युं छे. आ आखी प्रक्रिया अहीं बतावी न शकाय तेमज आ संकलित कोशमां मूळना अर्थो ज्यां बदल्या छे त्यां कया आधारे एम कर्तुं छे ए पण कोशमां न दर्शावी शकाय. पण संपादके ज्यां अर्थ बदल्या छे त्यां आधारपूर्वक ज एम कर्तुं छे एनी खातरी जरूर आपी शकाय. ज्यां नवा अर्थ विशे पूरी खातरी थई शकी नथी त्यां शंकाचिह्न मूकवानी पण काळजी राखी छे. आम छतां संपादकनी सरतचूक के गेरसमज काम नहीं करी गई होय एवं तो साव न कही
शकाय.
आ कोशमां अर्थनिर्णयनी प्रक्रिया केवी रीते चाली छे एनो थोडो अंदाज आ ग्रंथमां पाछळ थोडीक शब्दार्थचर्चा मूकी छे तेना परथी आवशे.
कोशमां अर्थनिर्णय माटे उपयोगमां लीला ग्रंथोनी यादी पण पाछळ जोडवामां आवी छे.
शब्दमूळ
शब्दार्थ आप्या पछी कौंसमां शब्दमूळ एटलेके व्युत्पत्ति आपवामां आवेल छे. गोळ कौंस ( ) मां छे ते मूळ ग्रंथमांथी प्राप्त थयेल शब्दमूळ छे, चोरस कौंसमां छे ते आ संकलित कोशना संपादके आपेल छे. आ विशे आरंभे ज स्पष्टता करवी जोईए के कौंसमां बधे चुस्त रीते व्युत्पत्ति अभिप्रेत नथी. केटलेक स्थाने मळतापणुं ज अभिप्रेत छे. एटले मध्यकालीन गुजराती शब्दने मळतो शब्द अन्यत्र प्राप्त थतो होय तो ए पण नोध्यो छे. कौंसमां भीली, कच्छी, हिंदी, मराठी, पंजाबी, पालि वगेरे भाषाना शब्दो नोध्या छे त्यां समान्तरता ज समजवानी छे.
आम तो, डॉ. भायाणीनो अभिप्राय एवो हतो के व्युत्पत्तिना विषयमां बहु पडवा जेवुं नथी. आपणे त्यां घणी वार व्युत्पत्ति अपाय छे ते आधारभूत होती नथी, ए ग
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