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पराभव गुर्जरा. अपमान, तिरस्कार] (सं.); लावल. *पराजय, [तिरस्कार,
अनादर]
अहीं लावल.नो 'पराजय' अर्थ शंकास्पद छे, पण 'तिरस्कार, अनादर' ए अर्थ संदर्भमां बराबर बेसे छे एम समजवानुं छे. ___ *पराले [पडाळे] नरप. *राते, [परसाळे]
अहीं मूळ ग्रंथनो 'परालें' पाठ अने तेनो 'राते' ए अर्थ बन्ने शंकास्पद छे तेमज 'पडाळे' पाठ अने एनो 'परसाळे' अर्थ लेतां संदर्भमां बराबर बेसे छे एम समजवान
(३) मूळ ग्रंथमा ज आपेला अर्थ सामे प्रश्नार्थ मूकी संशय व्यक्त कर्यो होय त्यारे जो अर्थ साधार ठरतो होय तो प्रश्नार्थ रद करवो; ए अर्थ साव खोटो ज साबित थतो होय तो छोडी देवो; अन्यथा एम ने एम राखी संकलित कोशना संपादकथी खातरीपूर्वकनो के अटकळे अर्थ आपी शकातो होय तो आपवो. जेमके,
परीकरी प्रेमप. वींटाळी ?
अहीं मूळ ग्रंथना संपादके ज पोते आपेला अर्थ परत्वे संशय व्यक्त कर्यो छे ने संकलित कोशना संपादकने एमां कंई सुधारवा जेवू लाग्युं नथी एम समजवानुं छे.
परीभव कामा(त्रि). हार, अपमान ?, [कष्ट, पीडा]
अहीं मूळ ग्रंथना संपादके संशयपूर्वक आपेला अर्थ खोटा छे एम खातरीपूर्वक कही शकातुं नथी, पण 'कष्ट, पीडा' ए अर्थ योग्य रीते बेसी जाय छे एम समजवानुं रहे छे.
पुंछ सिंहा(शा). झडपी ?, [*पहोंच, *गति]
अहीं मूळ ग्रंथनो अर्थ तो शंकास्पद रह्यो ज छे ते साथे संकलित कोशना संपादके आपेला अर्थ पण अटकळपूर्वकना ज छे एम समजवानुं छे.
(४) मूळ ग्रंथना संपादकने शब्दार्थ बेठो न होय तेथी एणे कोई शब्दार्थ आप्यो ज न होय के केवळ प्रश्नार्थ मूकी चलाव्यु होय एम पण जोवा मळे छे. मूळ ग्रंथमां शब्दार्थ न होय त्यां -' गुरुरेखा मूकी ए स्थिति दर्शातवी अने प्रश्नार्थ होय त्यां एम ने एम राखवो तथा संकलित कोशना संपादकथी अर्थ आपी शकाय तो आपवो. (जो के आरंभमां '_' के '?' मूकवाने बदले मूळ ग्रंथनो अर्थ छोड्यानी निशानी करी हती जे पछी सुधारी लीधुं छे, पण क्यांक सुधारवानु रही गयुं पण हशे.)
दाखला तरीके. अरंण (अरंण मूके) मदमो. -, [*अरण्यमां मूके, *दूर राखे, *छोडे] अहीं मूळ ग्रंथना संपादके अर्थ आप्यो नथी अने संकलित कोशना संपादके
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