Book Title: Lati Samhita
Author(s): Manikchandra Digambar Jain Granthmala Samiti
Publisher: Manikchandra Digambar Jain Granthmala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ (७) मालूम हुए हैं, जो कि एक बहुत बड़े प्रतिभाशाली विद्वान थे और जिनके बनाये हुए 'अध्यात्मकमलमार्तण्ड ' तथा 'लाटी संहिता (श्रावकाचार) नामके दो उत्तम ग्रन्थ और भी उपलब्ध होते हैं । आज इसी विषयको स्पष्ट करने और अपनी खोजको पाठकोंके सामने रखनेका प्रयत्न किया जाता है:. सबसे पहिले मैं अपने पाठकोंको यह बतला देना चाहता हूं कि पंचाध्यायीमें, सम्यक्त्वके प्रशम संवेगादि चार गुणोंका कथन करते हुए, नीचे लिखी एक गाथा ग्रन्थकार द्वारा उधृत पाई जाती है: संवेओ णिव्वेओ जिंदण गरुहा य उवसमो भत्ती। वच्छल्लं अणुकंपा, अट्ठगुणा हुंति सम्मत्ते ॥ यह गाथा, जिसमें सम्यक्त्वके संवेगादिक अष्टगुणोंका उल्लेख है, वसुनन्दिश्रावकाचारके सम्यक्त्व प्रकरणकी गाथा है-वहां मूलरूपसे नं० ४६ पर दर्ज है-और इस श्रावकाचारके कर्ता वसुनन्दी आचार्य विक्रम की १२ वीं शताब्दीके अन्तिम भागमें हुए हैं । ऐसी हालतमें यह स्पष्ट है कि पंचाध्यायी विक्रमकी १२ वीं शताब्दीसे बादकी बनी हुई है और इसलिये वह उन अमृतचन्द्राचार्यकी कृति नहीं हो सकती जोक वसुनन्दीसे बहुत पहले हो गये हैं। अमृतचन्द्राचार्यके 'पुरुषार्थसिद्धयुपाय' ग्रन्थका तो 'येनांशेन सुदृष्टिः' नामका एक पद्य भी इस ग्रन्थमें उधृत है, जिसे ग्रन्थकारने अपने कथनकी प्रमाणतामें 'उक्तं च ' रूपसे दिया है और इससे भी यह बात और ज्यादा पुष्ट होती है कि प्रकृत ग्रन्थ अमृतचन्द्राचार्यका बनाया हुआ नहीं है । यहां पर मैं इतना और भी प्रकट कर देना उचित समझता हूं कि पं० मक्खनलालजी शास्त्रीने अपनी भाषाटीकामें उक्त गाथाको क्षेपक' बता लाया है और उसके लिये कोई हेतु या प्रमाण नहीं दिया, सिर्फ फुटनोटमें इतना ही लिख दिया है कि “ यह गाथा पंचाध्यायीमें क्षेपक रूपसे आई है" । इस फुट नोटको देखकर बड़ा ही खेद होता है और समझमें नहीं आता कि उनके इस लिखनेका क्या रहस्य है ! ! यह गाथा पंचाध्यायीमें

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 162