Book Title: Kumarpal Pratibodh
Author(s): Somprabhacharya, Jinvijay
Publisher: Central Library
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४४६
कुमारपाल प्रतिबोधे
तो जगुत्तम - रूव-लावन्न, संपत्ति - दंसण-वसिण विसयमाण विम्य परव्वसु, पफुल्ल- लोयत्तण-जुयलु
थूलभद्द अणुरत्त-माणसु,
निम्मल-मुत्तिय-हारमिसि रइय चउक्कि पहिहु । पढमु पविउ हिय तसु पच्छा भवणि पवि ॥ १३ ॥ कलिउ दप्पणु वयण- छउमेण, रोलंब कुलसंवलिय
कुसुमबुट्टि दिट्टिहिं पयासिय, पल्हत्थ उवरि घणकणय- कलस-मंगल- दरिसिय,
चंदणु दंसिउ हसियमिसि इय कोसहिं असमाणु । घरि पविसंतह तासु किड नियअंगिहि सम्माणु || १४ ||
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इअ थुविकणं आसणमुवणीयं तीए धुलभद्दस्स । सो तत्थ निसन्नो उदय- सेल - सिहरम्मि चंदो व्व ॥ १९ ॥ दण तस्स रूवं तीए सिटिलिय-सरूव-गव्वाए । विन्नाण- पयडणत्थं मणोहरा वाइया वीणा ॥ २० ॥ अह कोसल-पयासण- उल्लसिय-महल्ल को उहल्लेण । वित्तं वीणा तह कहवि वाइया थूलभद्देण ॥ २१ ॥ कोसा कोसल्लमयं जह मिल्लइ तक्खणेण सलं व । तो पहाण - भोयणाईणि धूलभ करावे ॥ २२ ॥ -बंधिहि कह - पर्वधेहि, पण्डुत्तरपयडिणिहि नम्म-वयण-लीला - पसंगिहि,
कव्व
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वच्छायण-भरह-भाव
भूरि-भाव-संलाव-भंगिहि,
अक्ख - विणोइण ते गमहिं जा दुन्नि वि दिन-सेसु । ता पच्छिम - दिसि कामिणिहि अंकि निविट्ट दिसु ॥ २३ ॥
X अत्र पद्यचतुष्टयं गलितमादर्शपुस्तके | अङ्कानुक्रमेणापि तत्स्पष्टं ज्ञायते ।
[ पञ्चमः
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