Book Title: Kumarpal Pratibodh
Author(s): Somprabhacharya, Jinvijay
Publisher: Central Library

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Page 538
________________ प्रस्तावः] नमस्कारे नन्दन-कथा। तं कसण-भूयंगम वयणि थक्क, मुणि थूलभङ तह वि न हु डक्कु ॥ १०२॥ मह तिह कडक्खह विसइ पत्तु, जं तह वि न जायउ विसय-सत्तु । तं निसिय-खग्ग-धारग्गि-धीरु, चंकमिउ विच्छिन्नउ न मुणि-वीरु ॥ १०३ ।। जं विसय-सुक्ख-सेवा-निरीह, मह पासि वसंतउ वि समण-सीहु । पजलंत-जलण-जालाइ वुच्छु, तं तह वि न पत्तउ दाह दच्छु॥१०४ ॥ जं सुणिवि सिणिड-समिह-वयण, मह पत्थण-पणय-पहाण-वयण । मुणि-नाहु अखंडिय बंभचरणु, विसु थुटि वि तं विउ सत्थकरणु ॥ १०५ ॥ इय थुणह थूलभदं कोसा-संसग्ग-अग्गि-मग्गस्स । जस्स सुवन्नस्स व निम्मलस्स जाओ गुणुकरिसो ॥१०६॥ इति स्थूलिभद्र-कथा ॥ परमेष्ठिनमस्कारं ततः संस्मृत्य भूपतिः । तस्य माहात्म्यमीक्षं गुरुक्तं वक्ति तद्यथा ॥ जम्बूद्वीपे भारतक्षेत्रमध्ये __धर्मक्रीडाभूनगर्यस्त्ययोध्या । यत्प्राकारं कौतुकायातशेष श्रीलुण्टाकः प्राज्यशीर्षश्वकासे ॥१॥ तत्रारातिस्त्रैणवैधव्यदाना लङ्कर्मीणः सामवर्मा नृपोऽभूत् । स्वायत्तानां यः प्रतापेन तेने दिकान्तानां कुङ्कुमालेपलक्ष्मीम् ॥२॥ देवी तस्याभवल्लक्ष्मी[लक्ष्मी]रिव मनोहरा । x अत्र कियान् पाठः पतितः प्रतिभाति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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