Book Title: Kumarpal Pratibodh
Author(s): Somprabhacharya, Jinvijay
Publisher: Central Library

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Page 535
________________ ४५८ कुमारपालप्रतिबोधे [पचमः सुणइ धम्म सुंदर-सहाविण, तहि मुहचंद-पलोअणिण पसरिय-राय-समुद्द। तो कोसहि सो संग-सुहु पत्थइ गय-वय-मुडु ॥ ८७ ॥ कोस चिंतइ जइ वि इहु खुखिउ, बलवंत कम्मह वसिण तहा वि मग्गि ठाविमि उवाइण, तो पभणइ देहि महु दम्मु लाभु किं धम्मलाभेण, सो पुच्छइ केतिउ दविणु अह सा मग्गइ लक्खु । सो अलाहिवि गुरु-तरुह-फलु पंगु बहुअओ विलक्खु ॥ ८८॥ तीइ वुत्तइ सो सनिव्वेत. मा खिजसि किंचि तुहं ___ झत्ति वच नेवाल-मंडलु, तहिं देइ सावउ निवड लक्खु मुल्लु साहुस्स कंबलु, सो तहिं पत्तउ दिगु निवु दिन्नउ कंबल तेण । तं गोविव दंडय तलब तो वाहुडिउ जवेण ॥ ८९ ।। पत्तु अडविहि दिहु चोरेहिं, दीणार-लक्खागमण पिसुणु सउणु तहं जाउ तक्खणि, __गच्छंतु सो अवगणिउ तेहि मुणि वि समणु त्ति निअ-मणि, लक्खगमण सूअगु सउणु पुणु संजायउ तेसि । ता वालिवि पुच्छिउ समणु सउण परिक्खणरेसि ॥१०॥ सच्चु जंपसु अभउ तुह समण!, दीणारह लक्खु फुडु तुज्झु अत्थि कहि कत्थ गोविउ, तेणावि कंबल-रयणु दंड-मज्झि संठिउ निवेइउ, तो मुक्कउ गउ दित्तु तिण कंबलु कोसहि हथि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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