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कुमारपालप्रतिबोधे
[पचमः
सुणइ धम्म सुंदर-सहाविण, तहि मुहचंद-पलोअणिण पसरिय-राय-समुद्द। तो कोसहि सो संग-सुहु पत्थइ गय-वय-मुडु ॥ ८७ ॥ कोस चिंतइ जइ वि इहु खुखिउ,
बलवंत कम्मह वसिण तहा वि मग्गि ठाविमि उवाइण, तो पभणइ देहि महु
दम्मु लाभु किं धम्मलाभेण, सो पुच्छइ केतिउ दविणु अह सा मग्गइ लक्खु । सो अलाहिवि गुरु-तरुह-फलु पंगु बहुअओ विलक्खु ॥ ८८॥ तीइ वुत्तइ सो सनिव्वेत.
मा खिजसि किंचि तुहं ___ झत्ति वच नेवाल-मंडलु,
तहिं देइ सावउ निवड
लक्खु मुल्लु साहुस्स कंबलु, सो तहिं पत्तउ दिगु निवु दिन्नउ कंबल तेण । तं गोविव दंडय तलब तो वाहुडिउ जवेण ॥ ८९ ।। पत्तु अडविहि दिहु चोरेहिं,
दीणार-लक्खागमण पिसुणु सउणु तहं जाउ तक्खणि, __गच्छंतु सो अवगणिउ
तेहि मुणि वि समणु त्ति निअ-मणि, लक्खगमण सूअगु सउणु पुणु संजायउ तेसि । ता वालिवि पुच्छिउ समणु सउण परिक्खणरेसि ॥१०॥ सच्चु जंपसु अभउ तुह समण!,
दीणारह लक्खु फुडु तुज्झु अत्थि कहि कत्थ गोविउ,
तेणावि कंबल-रयणु
दंड-मज्झि संठिउ निवेइउ, तो मुक्कउ गउ दित्तु तिण कंबलु कोसहि हथि ।
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